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आप्तवाणी-५
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दादाश्री : बालक के कर्म के उदय बालक को भुगतने हैं और मदर को वह देखकर भुगतने होते हैं। मूल कर्म बालक का, उसमें मदर की अनुमोदना थी, इसलिए मदर को देखकर भुगतना पड़ता है। करना, करवाना और अनुमोदन करना, ये तीनों कर्मबंधन के कारण हैं।
प्रश्नकर्ता : स्वस्तिक का क्या अर्थ है?
दादाश्री : स्वस्तिक का 'सिम्बल' (चिह्न) गतिसूचक है, उसकी चार भुजाएँ चार गतियों को सूचित करती हैं और सेन्टर में मोक्ष है। चार गतियों में से अंत में मोक्ष में ही जाना पड़ेगा। चार गतियाँ अर्थात् मनुष्यगति, देवगति, तिर्यंच(पशु)गति और नर्कगति। ये चार गतियाँ पुण्य और पाप के आधार पर हैं और पुण्य-पाप से रहित हो गया और 'ज्ञान' प्राप्त हो गया तो मोक्ष की गति होती है। वहाँ पर क्रेडिट भी नहीं है और डेबिट भी नहीं है। यहाँ क्रेडिट होता है तब देवगति में जाता है या फिर प्रधानमंत्री बनता है। यह आप 'एस.ई.' बने, तो वह क्रेडिट के कारण है। और डेबिट हो तो? तो मिल में नौकरी करनी पड़ेगी। पूरा दिन मेहनत करो तो भी पूरा नहीं पड़ता और क्रेडिट-डेबिट नहीं हुआ तो मोक्ष होता है।
मंदिरों का महत्व प्रश्नकर्ता : यदि जिनालय नहीं होते, मंदिर नहीं होते, तो फिर जिस प्रकार हमारे लिए दादाश्री प्रकट हुए हैं, उस प्रकार से उनके लिए कोई न कोई प्रकट हुआ होता न?
दादाश्री : वह तो ठीक है। वह एक प्रकार का विकल्प है। ऐसा हुआ है, ऐसा नहीं होता तो दूसरा कोई उपाय तो होता न? दूसरा कुछ न कुछ मिल जाता। परन्तु इन मंदिरों का उपाय बहुत ही अच्छा है। हिन्दुस्तान का यह सबसे बड़ा साइन्स है। यह सबसे अच्छी परोक्ष भक्ति है, परन्तु यदि समझे तो! अभी तो जिनालय में जाते समय मैं महावीर भगवान से पूछता हूँ कि, 'ये सब लोग आपके इतने अधिक दर्शन करते हैं, तो भी इतनी सारी अड़चनें क्यों आती हैं?' तब महावीर भगवान क्या कहते हैं? 'ये लोग दर्शन करते समय मेरा फोटो लेते हैं, बाहर उनके जूते