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आप्तवाणी-५
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प्रश्नकर्ता : मनुष्य जीवन का मुख्य हेतु साधने का मार्ग कौन-सा
दादाश्री : यह मनुष्य जीवन इसलिए ही मिला है कि यहाँ से अपनी मुक्ति हो सकती है, भगवान की प्राप्ति की जा सकती है। मनुष्यगति में से ही मुक्ति होती है। अनंत जन्मों से हम प्रयत्न करते रहते हैं, परन्तु सच्चा मार्ग नहीं मिलता। सच्चा मार्ग मिले तब मनुष्यजन्म में से मुक्ति हो सके, ऐसा है। दूसरी किसी योनि में मुक्ति नहीं हो सकती, मनुष्ययोनि में ही अज्ञान से मुक्ति हो सकती है, देह सहित मुक्ति हो सकती है।
___ इस मनुष्य जीवन का हेतु जो है, उसे साधने का मार्ग, 'ज्ञानी पुरुष' हमें मिलें, तो प्राप्त हो सकता है, और अपना सभी प्रकार का काम हो सकता है।
असंयोगी, वही मोक्ष प्रश्नकर्ता : हमें मोक्ष नहीं चाहिए, परन्तु संयोग रहित होना है।
दादाश्री : यानी जहाँ संयोग होंगे वहाँ पर वियोग होगा ही। आप कान इस तरह उल्टा पकड़वाते हो!
आत्मा के साथ कोई संयोग नहीं रहे अर्थात् मोक्ष हो गया! यह तो स्थूल संयोग, सूक्ष्म संयोग और वाणी के संयोग मिलते ही रहते हैं और वे संयोग फिर वियोगी स्वभाव के हैं। वियोगी वस्तु कुछ और नहीं है। अर्थात् आपको सिर्फ संयोगों की चिंता करनी है कि साथ में संयोग नहीं रहें! सिर्फ संयोग नहीं रहेंगे तो बहुत हो गया। इसलिए भगवान ने कहा है कि, 'एगो मे शाषओ अप्पा...
तम्हा संजोग संबंधम्, सव्वम् तिविहेण वोसरियामि...'
इस प्रकार आपको संयोग अर्पण कर देने हैं और फिर मोक्ष नहीं चाहिए, ऐसा बोलते हो!
प्रश्नकर्ता : धर्म के प्रति मनुष्य को आकर्षण नहीं होता, थोड़ा