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________________ आप्तवाणी-५ १६३ योगेश्वर कृष्ण के दर्शन करने चाहिए। इन दो तरीकों में से आपको क्या चाहिए? प्रश्नकर्ता : भक्ति-ध्यान, वह नशा है? दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : तो फिर नशेवाला जीवन जीना अच्छा या कुदरती! दादाश्री : कुदरती जीवन जीना हो तो बहुत ही अच्छा। यह सारा कुदरती रखा ही कहाँ है? इस कुदरत ने बहुत ही सुंदर किया है! कुदरती हो तभी प्रगति है, नहीं तो प्रगति नहीं! __ प्रश्नकर्ता : कुंडलिनी का जो ध्यान करते हैं, वह खुली आँखों से करें, वह अच्छा है या बंद आँखों से करें वह अच्छा? दादाश्री : ऐसा है कि ध्यान आप खुली आँखों से करोगे तो भी बंधन है और बंद आँखों से करोगे तो भी बंधन है। कुंडलिनी का ध्यान नहीं करना है। ध्यान खुद के स्वरूप का करना है। कुंडलिनी तो उसमें साधन है। साधन का उपयोग करना है। खुद के स्वरूप की रमणता उत्पन्न हो गई, उसीका नाम मुक्ति। प्रश्नकर्ता : सांख्ययोग किस तरह प्राप्त होता है? दादाश्री : सिर्फ सांख्य एक पंखवाला कहलाता है। उससे उड़ा नहीं जा सकता। इसलिए सांख्य और योग, उन दो पंखों से उड़ा जा सकता है! बिना योग के, बिना मानसिक पूजा के आगे बढ़ा किस तरह जाएगा? मानसिक पूजा वगैरह सबकी व्यवस्था की है, वह कितनी अच्छी व्यवस्था यह सांख्य अर्थात् ज्ञान जानना चाहिए। देह के धर्म, मन के धर्म, बुद्धि के धर्म, आत्मा के धर्म, वह सब जानना चाहिए। उसे ही सांख्य कहा जाता है और बिना योग के सांख्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसलिए योग, यहाँ मानसिक पूजा (गुरु महाराज की) कि जिनके आधार पर आप
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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