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________________ आप्तवाणी-५ १५५ प्रश्नकर्ता : फिर पता चलेगा न कि अब मोक्ष जल्दी आ गया। दादाश्री : ऐसे जल्दबाज़ी करने जाओ वहाँ दूसरी झाड़ी लग जाएगी! यह जल्दबाजी का मार्ग नहीं है। यह तो जागृति रखने का मार्ग है। शुद्ध उपयोग में रहो, उससे अपने आप ही निर्जरा होती ही रहेगी। आपको कुछ भी नहीं करना है। इसलिए तो हम भी ऐसा कहते हैं कि हमें मोक्ष जाने की जल्दी नहीं है, हमें जल्दबाज़ी किसलिए? यहाँ पर ही हमें मोक्ष बर्तता है, तब हमें दूसरा कौन-सा मोक्ष चाहिए? और वह मोक्ष तो नियमपूर्वक है। वह तो अपने आप बोर्ड पर आ जाएगा कि तीन बजकर तीन सेकन्ड पर होगा! हम लोगों को जल्दबाज़ी करने की क्या ज़रूरत है? प्रश्नकर्ता : मोक्ष, वह निश्चित ही है? दादाश्री : नहीं, निश्चित मत मान लेना। निश्चित होता तब तो फिर सभी चैन से सो जाएँगे। ऐसा नहीं है। शुद्ध उपयोग से अबंध दशा 'आप शुद्ध उपयोग में ही रहो' इतना हम कहना चाहते हैं। और कुछ भी मत सोचना। यह दिन नहीं है कि अभी पूरा हो जाएगा! यह तो संसार है। आप अपने उपयोग में रहोगे तो सारा हिसाब छूट जाएगा! हम सोच में पड़ें कि कब पूरा होगा?' तो दूसरा भूत घुस जाएगा। हमें किसलिए जल्दी है? हममें चारित्रमोह बहुत कम है, और आपका ढेर सारा होता है, परन्तु आपका भी दिनोंदिन कम ही होता जा रहा है। चारित्रमोह जाता है, वह मुक्ति देकर ही जाता है। पाँच लाख चारित्रमोह के मेहमान थे, उसमें से अब पाँच सौ गए, वे पाँच सौ कम हो गए, फिर वापिस पाँच सौ गए, फिर पाँच सौ गए, ऐसे कम ही होते जा रहे हैं। फिर पाँच लाख के चार लाख हो जाएँगे, फिर तीन लाख, फिर दो लाख, ऐसे करते-करते खत्म हो जाएगा। हम फिर गिनते रहें कि कितने रहे, कितने रहे, हमें उसे गिनकर क्या काम है?
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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