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________________ आप्तवाणी-५ आर्य प्रजा ! और बाहर की कौन - सी कहलाती है? प्रश्नकर्ता : अनार्य । दादाश्री : हमारे यहाँ पर कोई-कोई व्यक्ति ऐसे बन जाते हैं, तो उन्हें क्या कहते हैं? अनाड़ी। आर्यप्रजा अर्थात् आर्य आचार, आर्य विचार और आर्य उच्चार। हूँ। १४९ तुझे मेरी बात पसंद है? ऊब जाता है? प्रश्नकर्ता : पसंद है इसलिए बैठा हूँ । दादाश्री : तू कभी झूठ बोलता है क्या? प्रश्नकर्ता : बोलता हूँ। दादाश्री : झूठ बोलने से क्या नुकसान होता होगा ? प्रश्नकर्ता : नुकसान होता है। दादाश्री : अपने पर से विश्वास ही उठ जाता है। प्रश्नकर्ता : सामनेवाले को पता नहीं चलता, ऐसा समझकर बोलता दादाश्री : हाँ, परन्तु विश्वास उठ जाए तो मनुष्य की क़ीमत खतम ! तूने कभी चोरी की है क्या? प्रश्नकर्ता : नहीं, नहीं की । दादाश्री : नहीं की? तुझे चोरी करना पसंद नहीं है? प्रश्नकर्ता : पसंद तो है, लेकिन डर लगता है न! भूख लगी? बुझाओ ! दादाश्री : तू पेट में भोजन डालता है, वह किसलिए डालता है?
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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