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आप्तवाणी-५
कोई भी संयोग नहीं हो तब चैन मिलता है । लोग चैन ढूंढ़ते हैं । निराकुलता तो सिद्ध का १/८ गुण है ।
प्रश्नकर्ता : मन-बुद्धि - चित्त और अहंकार, उनमें सबसे अधिक शक्ति तो चित्त की है न?
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दादाश्री : ऐसा है न, चित्त मिश्रचेतन है और बाकी सब तो स्वभाव से पुद्गल है । चित्त, वह ज्ञान - दर्शन है । वह शुद्ध हो जाए तो शुद्धात्मा हो जाएगा, और जब तक इस संसार की जिसे बात पसंद हो, संसार में ही चित्त भटकता रहता हो, तो वह शुद्धात्मा नहीं है । इस 'ज्ञान' के प्रभाव से चित्त शुद्ध हो जाता है, इसलिए स्टेडीनेस (स्थिरता) आती है।
आधार-आधारी संबंध
खुद का बनाया हुआ महल हो तब तो गिरा दें, परन्तु यह महल तो प्रकृति का बनाया हुआ है। इसलिए पद्धतिपूर्वक समझ - समझकर करने जैसा है।
'ज्ञानी पुरुष' जानते हैं कि यह महल किस तरह से बनाया गया था और इसके कंगूरे कहाँ पर रखे हुए हैं, क्या करने से पहली मंजिल टूटेगी, फिर दूसरी मंजिल टूटेगी, वह सबकुछ ही 'ज्ञानी' जानते हैं।
खुद आधार देते थे, उससे जगत् खड़ा हुआ था । 'मैं चंदूभाई हूँ' तब तक आधार देते थे आप, अब 'मैं शुद्धात्मा हूँ', तो आधार देना बंद हो गया, इसलिए निराधार हो गया। उससे सारी वस्तुएँ गिर जाती हैं। इस हाथ के आधार पर वस्तुएँ हैं। हाथ हटाया तो वस्तु गिर जाएगी। वर्ना छोड़ने से छूटेगा नहीं ।
प्रश्नकर्ता : आधार से लिपटी हुई जो वृत्तियाँ हैं, वे किस तरह
छूटेंगी?
दादाश्री : ‘मैं शुद्धात्मा हूँ' वह लक्ष्य रहता है आपको? प्रश्नकर्ता : हाँ।