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________________ आप्तवाणी-५ १२१ प्रश्नकर्ता : धार्मिक पुस्तकें जंजाल में से मुक्त होने के लिए ही लिखी गई हैं न? दादाश्री : हाँ, परन्तु धार्मिक पुस्तकें जंजाल में से मुक्त होने का किसी भी जगह पर बताती ही नहीं। वे तो धर्म करने के लिए हैं। उससे जगत् पर अधर्म नहीं चढ़ बैठता। इसलिए ऐसा कुछ अच्छा सिखाते हैं। उससे सांसारिक सुख मिलते हैं, अड़चनें नहीं आती, खाने-पीने को मिलता है, लक्ष्मी मिलती है, इसलिए धर्म सिखाते रहते हैं। यह तो कभी ही 'ज्ञानी पुरुष' होते हैं, मैं जो बातें कर रहा हूँ, वे बातें कहीं भी होती नहीं। पुस्तकों में भी नहीं होती, क्योंकि इसका वर्णन हो सके ऐसा नहीं है। यह सब 'ज्ञानी पुरुष' के पास ही होता है। वे आपको जो समझाते हैं, वह आपसे बुद्धि द्वारा पकड़ा जा सकता है, और आपका आत्मा कबूल करे तभी मानना। 'ज्ञानी' के पास सीधा होना पड़ेगा। आड़ाई नाम मात्र को भी नहीं चलेगी और आपकी चिंता जाए, मतभेद जाएँ तो समझना कि सुनने का कुछ फल आया है। यह तो एक भी मतभेद नहीं गया, ध्यान नहीं सुधरा। आर्तध्यान और रौद्रध्यान होता है। उसका अर्थ यह कि धर्म का एक भी अक्षर पाया नहीं, फिर भी मन में ऐसा मान बैठते हैं कि 'चालीस वर्षों से मैं धर्म कर रहा हूँ, मंदिरों में, उपाश्रयों में पड़ा रहता हूँ', परन्तु उसका कोई अर्थ नहीं है। मीनिंगलेस है। आप अपना टाइम बिगाड़ रहे हो! खुद अनंत दोषों का भाजन है, फिर भी खुद का एक भी दोष नहीं दिखता। खुद के सेल्फ की ओर मुड़ने के बाद इस 'चंदूभाई' पर आपका पक्षपात नहीं रहता है, तब दोष दिखते हैं। अभी तो 'मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा मानते हो आप और जज भी आप, वकील भी आप और अभियुक्त भी आप! बोलो अब, एक भी दोष दिखेगा? इसका कब अन्त आएगा? इस तरह कब तक भटकते रहेंगे? अब काल बहुत विचित्र आनेवाला है। ज्ञानी पुरुष' मिल गए हैं, इसलिए भावना करके हमें अपना काम निकाल लेना है। वर्ल्ड में कोई ऐसी चीज़ नहीं है कि जो हम दें तो 'ज्ञानी पुरुष' को काम में आए। क्योंकि उन्हें किसी भी चीज़ की भीख ही नहीं होती। उन्हें
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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