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आप्तवाणी-५
प्रत्यक्ष सद्गुरु योगथी स्वच्छंद ते रोकाय,
अन्य उपाय कर्या थकी प्राये बमणो थाय।' खुद रोकने जाएगा तो दुगुना हो जाएगा, और 'ज्ञानी पुरुष' के पास से उनकी आज्ञा का आराधन करना, वही उपाय है, दूसरा कोई उपाय नहीं
ज्ञानी, बालक जैसे यह छोटा बच्चा रोता है, वह बुद्धिपूर्वक नहीं रोता है, और बीसपच्चीस वर्ष का मनुष्य रोता है, वह बुद्धिपूर्वक रोता है, और 'ज्ञानी पुरुष' रोएँ, तो वे बुद्धिपूर्वक नहीं रोते। बालक और ज्ञानी दोनों एक समान होते हैं। दोनों अबुधभाववाले होते हैं। बालक का उगता हुआ सूर्य और ज्ञानी का अस्त होता हुआ सूर्य। बालक को अहंकार है परन्तु उसे जागृति नहीं है, और हम अहंकारशून्य हैं।
जहाँ बुद्धि का उपयोग करते हैं, वहीं पर पाप बंधते हैं।
प्रश्नकर्ता : दादा, हम चौबीसों घंटे आपका नाम लेकर बोलते रहें तो पाप नहीं बंधेगे न?
दादाश्री : दादा का नाम लेना वह खुद के ही शुद्धात्मा का नाम लेने के बराबर है। ये पद(भजन) गाते हैं वे खुद के ही शुद्धात्मा का कीर्तन गाने जैसा है। यहाँ सबकुछ खुद अपने लिए ही है। यह आरती भी स्वयं खुद की ही करता है। हमारा कुछ भी नहीं। जिसे जितना करना आया उतना ही उसका काम होगा।
ओपन माइन्ड 'माइन्ड ओपन' नहीं रहे, हमेशा उलझा हुआ ही रहे, तो मुक्त हास्य उत्पन्न नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : ओपन माइन्ड यानी क्या कहना चाहते हैं? दादाश्री : यह गुड़ के चारों तरफ मक्खियाँ घूमती रहती हैं, उसी