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________________ आप्तवाणी-५ सम्यक् बुद्धि और दूसरी विपरीत । यहाँ सत्संग होता है, तब आपकी जो विपरीत बुद्धि होती है, वही टर्न लेकर सम्यक् होती है और वही सम्यक् बुद्धि मोक्ष में ले जाती है । प्रश्नकर्ता : अबुध होने के बाद 'केवळज्ञान' होता है न? दादाश्री : अबुध हुए बिना 'केवळज्ञान' उत्पन्न होता ही नहीं है। जहाँ भी बुद्धि होती है वहाँ व्यवहारिक अहंकार होता है, ज्ञानी हों तब भी, और बुद्धि नहीं हो तब व्यवहारिक अहंकार भी नहीं होता । प्रश्नकर्ता : तो फिर बुद्धि हो वह अच्छा या नहीं हो वह अच्छा? दादाश्री : मोक्ष में जाना हो तो बुद्धि काम की ही नहीं है। बुद्धि तो संसार में भटकाती है । जहाँ जाए वहाँ पर नफा-नुकसान दिखाती है । गाड़ी में बैठने में भी बुद्धि काम में आती है कि यहाँ बैठूं तो फायदा है और वहाँ नुकसान है ! बुद्धि की भूख ऐसी है कि कभी भी मिटती ही नहीं। इसलिए वह तो अंतवाला होना चाहिए। पूरा जगत् बुद्धिज्ञान में है । प्रश्नकर्ता : बुद्धि से आगे जाना चाहिए? दादाश्री : बुद्धि से आगे गए बिना चारा ही नहीं है। तब तक मोक्ष होगा ही नहीं। १०९ - प्रत्यक्ष मोक्ष वर्तना ज्ञानी की आज्ञा प्रश्नकर्ता : ऐसा क्यों कहा जाता है कि ज्ञानी की आज्ञा में ही वीतराग समाया हुआ है? दादाश्री : उस आज्ञा के अलावा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं है न? जो ज्ञानी की आज्ञा नहीं पालता, वह मोक्ष में जाने के लायक नहीं है । जब लायक हो जाएगा तब वह आज्ञा पाल सकेगा, वर्ना स्वच्छंद खड़ा होगा । इसलिए श्रीमद् राजचंद्र ने कहा है: 'रोके जीव स्वच्छंद तो पामे अवश्य मोक्ष, पाम्या एम अनंत छे, भाख्युं जिन निर्दोष।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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