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________________ आप्तवाणी-५ ९९ दादाश्री : वह मोह था। मोह मार खिलाता है। अब आपको मार नहीं खिलाएगा और संसार चलता रहेगा। बिना रुचि के समभाव से निकाल करना। प्रश्नकर्ता : वह अच्छा कहलाता है? दादाश्री : वे 'ज्ञानी' कहलाते हैं, इन्टरेस्ट(रुचि) के बिना करें वे ज्ञानी कहलाते हैं। प्रश्नकर्ता : रुचि के बिना कोई वस्तु करें तो उसका शरीर पर असर नहीं होता? दादाश्री : जो इन्टरेस्ट था, वह शरीर पर मोह की मार खिलाता था। उससे शरीर पर असर होता था। इससे तो शरीर अच्छा हो जाता है। गुलाब की तरह खिलता है। और रुचिवाला तो मुँह पर अरंडी का तेल चुपड़ा हो वैसा होता है। सहजता और देहाध्यास प्रश्नकर्ता : देह सहज हो जाए, उसे देहाध्यास कहते हैं? दादाश्री : आपने सहज किसे समझा? सहज की भाषा में सहज समझे हो या अपनी भाषा में? जेब काट ले और आप पर असर नहीं हो, तब देहाध्यास गया। देह को कोई किसी भी प्रकार से तंग करे और आप यदि स्वीकार लो तो वह देहाध्यास है। 'मुझे क्यों किया', तो वह देहाध्यास है। ज्ञानियों की भाषा में देह सहज हो जाए तो देहाध्यास गया। प्रश्नकर्ता : देह सहज हुई कब मानी जाती है? दादाश्री : हमारी देह को कुछ भी करे, फिर भी हमें राग-द्वेष नहीं हो, वह सहज कहलाता है। यह हमें देखकर समझ लो न कि सहज किसे कहते हैं? सहज अर्थात् स्वाभाविक, कुदरती, विभाविक दशा नहीं। खुद 'मैं हूँ' ऐसा भान नहीं है। प्रश्नकर्ता : सहज कब होते हैं?
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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