SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-५ भी संसार में नहीं रहता हूँ, फिर भी कुछ बिगड़ता नहीं है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् भय नहीं रखें? दादाश्री : भय होता ही नहीं 'हमलोगों' को! हम 'शुद्धात्मा', इसलिए 'हमें' कोई देख नहीं सकता, नुकसान नहीं कर सकता, मार नहीं सकता, कोई नाम भी नहीं दे सकता! ये तो खुद के कल्पित डर से जगत् सर्जित हो गया है। किसीकी बीच में दख़ल नहीं है। और 'चंदूभाई' ज़रा नरम हो गए हों तो हम उन्हें दर्पण के सामने खड़ा रखकर ऐसे कंधा थपथपाकर कहें कि "हम हैं न आपके साथ! पहले तो अकेले थे, उलझन में पड़ जाते थे। किसीसे कह नहीं सकते थे। अब तो साथ में ही हैं। घबराते क्यों हो? हम 'भगवान' हैं और आप 'चंदूभाई' हो। इसलिए घबराना मत।" यदि चंदूभाई बहुत एलिवेट हो रहे हों तो उन्हें कहना 'हमारी सत्ता के कारण आपका इतना रौब पड़ता है।' अर्थात् हमें होम डिपार्टमेन्ट में बैठे-बैठे फ़ॉरेन का सब निपटाते रहना है। यह निर्लेप 'ज्ञान' है, कुछ भी स्पर्श नहीं कर सके, ऐसा है! ____मन के स्वभाव की सभी हक़ीक़त बारीकी से समझने की ज़रूरत है। सभी चाबियाँ जाननी हैं। उदाहरण के रूप में, पुलिसवाला चक्कर लगाता रहे, यानी क्या आप पर धावा बोलनेवाला है? 'आप' कहो, 'नहीं', वैसा नहीं है। पुलिसवाला आपके लिए नई जगह बना रहा है। वह अपना हित कर रहा है, ऐसा समझें, या यह पुलिसवाला हमारा नुकसान करने आया है ऐसा समझें? मन मेस्क्यूलाइन जेन्डर (पुल्लिंग) नहीं है, फेमिनाइन जेन्डर (स्त्रीलिंग) नहीं है, वह न्यूट्रल है। इसलिए घबराने का कोई कारण नहीं है। आपको 'ज्ञान' की जागृति रखनी है कि हमें दादा ने कहा है कि हम ज्ञाता-दृष्टा हैं। भले ही शोर मचाता हो, जितना मचाना हो उतना मचाए। उस घड़ी हमें ज़रा स्थिरता पकड़ लेनी चाहिए। गो टु दादा! और बहुत दुःख आ पड़े, तब आपको कहना चाहिए कि जाओ 'दादा' के पास।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy