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आप्तवाणी-५
पाँच इन्द्रियों की क्षयोपक्षम शक्ति उदय के अधीन है । फिर इन्द्रियाँ जो देखें-जानें उसमें नया कहाँ से होगा? यह बात समझ में आए ऐसी है या नहीं? यहाँ पर समझ जाते हैं, परन्तु मेरी अनुपस्थिति में तो फिर से आवरण आ जाता है। हमारी उपस्थिति में आपके सब आवरण खुल जाते हैं, और हमारा 'ज्ञान' लेने के बाद तो आवरण हमेशा के लिए हट जाते हैं !
कर्मबंधन किससे होता है?
'मैं चंदूलाल हूँ', 'मैं आचार्य महाराज हूँ' वही कर्मबंध का मुख्य कारण है और 'यह मेरा है', वह 'सेकन्डरी' कारण है। कॉज़ेज़ चार्ज रूप से होते हैं। जहाँ-जहाँ 'मैं और मेरा' लगाया, वहाँ पर उतने ही कॉज़ेज़ होते हैं। और कोई कॉज़ेज़ नहीं होते हैं । चार्ज को पूरण कहा जाता है और उसका जो डिस्चार्ज होता है, वह सारा ही गलन स्वरूप है।
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बात को सिर्फ समझनी ही है । यह विज्ञान है । विज्ञान के अंकुर फूटें तो विज्ञान में सबकुछ दिखता है। विज्ञान में क्या नहीं दिखता? इसलिए बात को समझो। कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है । विज्ञान में करने के लिए कुछ रखा ही नहीं । यदि 'करे' न तो वहाँ समकित नहीं होता ! कुछ भी 'करे' तो वहाँ समकित प्राप्त नहीं होता !!
विचारों में निर्तन्मयता
प्रश्नकर्ता : यदि विचार सताते हों और चिंता करवाते हों, उन्हें किस तरह रोकें ?
दादाश्री : सोचना, वह किसका धर्म है ?
वह आत्मा का धर्म नहीं है, मन का धर्म है । आपने तय किया हो कि ये सब गालियाँ दे रहे हैं वह कुछ भी मुझे सुनना नहीं है, फिर भी कान का स्वभाव सुन लेने का है । वह सुने बगैर रहेगा ही नहीं । वैसा ही मन का स्वभाव है। हमें पसंद नहीं हों, फिर भी भीतर वे विचार आते हैं। वह मन का स्वाभाविक धर्म है । विचार ज्ञेय हैं और 'आप' ज्ञाता हैं ।
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इसलिए जो विचार आते हैं उन्हें 'आपको' देखते ही रहना है, निरीक्षण