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________________ ७६ आप्तवाणी-५ आत्मा - एक या प्रत्येक? ब्रह्मस्वरूप हुआ कब कहलाता है कि किसी प्रकार का मतभेद नहीं रहा। पहले ब्रह्मस्वरूप का दरवाज़ा आता है। ये सभी मत वहाँ पर मिल जाते हैं। वहाँ बड़ा दरवाज़ा है। ब्रह्मस्वरूप हुआ किसे कहते हैं कि जिसकी वाणी मत वाली नहीं होती, गच्छवाली नहीं होती, सिर्फ आत्मा संबंधी वाणी ही होती है, जुदाई नहीं होती। वह ब्रह्मस्वरूप हुए कहलाते हैं। ब्रह्मस्वरूप होने के बाद तो आत्मा, परमात्मा ही है। वहाँ शुद्धात्मा की बात ही क्या करनी? प्रश्नकर्ता : ब्रह्मस्वरूप एक है या अनेक भासित होते हैं? दादाश्री : एक और अनेक दोनों हैं। कुछ अपेक्षा से एक है और कुछ अपेक्षा से अनेक है। वह तो ब्रह्मस्वरूप की बात है। ब्रह्मस्वरूप की आप शुद्धात्मा के साथ तुलना करते हो? वास्तव में आत्मा प्रत्येक है। यानी कि जो आत्मा वहाँ मोक्ष में गए, उन्हें मोक्ष का सुख बरतता है, और जो बँधे हुए हैं, उन्हें बंधन का सुख बरतता है। आत्मा यदि एक होता न तो वहाँवाले को मोक्ष का सुख और यहाँवाले को भी मोक्ष का सुख बरतता! इसलिए आत्मा प्रत्येक है, अलग-अलग हैं। और वहाँ पर भी अलग-अलग हैं। वहाँ एक ही होता न तो वहाँ जाकर हमें क्या फायदा? हमारी सारी मिल्कियत उन्हें दे दें? वहाँ सिद्धगति में जाकर तो खुद के स्वयं-सुख में रहना है। वहाँ जाकर एक हो जाना होता, उससे तो यहाँ क्या बुरा है? पत्नी पकौड़ी-वकौड़ी बनाकर तो खिलाती है! बहुत हुआ तो पत्नी झिड़केगी उतना ही न? दूसरा यहाँ क्या दुःख है? गलन का रहस्य 'ज्ञानी पुरुष' क्या कहना चाहते हैं कि यह खाते हैं, पीते हैं, वह सब गलन है। जगत् उसे पूरण समझता है, क्योंकि जगत् को इन्द्रियज्ञान से जो दिखता है, उसे सत्य मानता है और वह यथार्थ सत्य से भिन्न है। पूरण कुछ अंश तक आपके हाथ में है, सर्वांश रूप से नहीं। स्वरूपज्ञान मिले तो खुद स्वसत्ता में आता है, नहीं तो नहीं आता। या फिर मतिज्ञान
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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