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________________ [४] स्वसत्ता - परसत्ता खुद की सत्ता कितनी होगी?! इस वर्ल्ड में कोई भी ऐसा मनुष्य पैदा नहीं हुआ कि जिसकी संडास जाने की खुद की स्वतंत्र शक्ति हो! वह तो जब रुक जाए, तब पता चलता है कि मेरी शक्ति थी ही नहीं। नींद नहीं आए, तब पता चलता है कि सोने की शक्ति मेरी नहीं है। उठना हो उस समय भी यदि उठा नहीं जाए, तब पता चलता है कि यह शक्ति भी मेरी नहीं है। यह सबकुछ जो संसार में हो रहा है, वह अपनी' सत्ता में नहीं है। अपनी' सत्ता संपूर्ण है, लेकिन उसे जानते नहीं है। और परसत्ता को ही स्वसत्ता मानते हैं। भगवान के पास ऐसी कोई सत्ता है ही नहीं। जब तक खुद के स्वरूप का भान नहीं हो जाता, तब तक सबकुछ बेकार है। मार्केट मटीरियल' है। इसका क्या 'इगोइज़म' रखना? और यदि 'इगोइज़म' रखने जैसा हो तो सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' को रखने जैसा है कि जिनके पास पूरे ब्रह्मांड की सत्ता होती है। और तब उनमें 'इगोइज़म' ही नहीं रहता। जहाँ पर सत्ता नहीं है, वहाँ पर 'इगोइज़म' है और जहाँ पर सत्ता है, वहाँ पर 'इगोइज़म' नहीं है। 'ज्ञानीपुरुष' तो बालक जैसे होते हैं। सत्ता, पुण्य से प्राप्त... जगत् का नियम ऐसा है कि जिस सत्ता के प्राप्त होने पर उसका थोड़ा-सा भी दुरुपयोग हो, तो वह सत्ता चली जाती है। सत्ता के सदुपयोग का नाम करुणा है और सत्ता का दुरुपयोग अर्थात् वह फिर राक्षसी वृति कहलाती है। सत्ता किसलिए है? पुण्य से सत्ता
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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