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है, आपने हस्ताक्षर कर दिए । हस्ताक्षर नहीं किए, छूट गए, भगवान ऐसा कहते हैं ।
आप्तवाणी-३
तन्मयाकार नहीं हुए
तो
प्रश्नकर्ता : पुद्गल भाव में तन्मयाकार हुए या नहीं, खुद को उसका एक्ज़ेक्टली किस तरह पता चलता है ?
दादाश्री : मुँह बिगड़ जाता है, मन बिगड़ जाता है, ऐसा सब असर हो जाता है। इसके बावजूद भी ऐसा असर हो तो भी 'हम' जुदा रह सकते हैं। वह आपको 'खुद' को ही पता चलता है। पुद्गल भाव में तन्मयाकार होते ही अंदर दो-चार डंडे पड़ते हैं तो तुरन्त पता चल जाता है कि यहाँ पर 'अपनी' बाउन्ड्री पार कर ली ।
मन, मन का धर्म अदा करता है, बुद्धि, बुद्धि का धर्म अदा करती है, अहंकार, अहंकार धर्म अदा करता है । वे सभी पुद्गल भाव हैं, वे आत्मभाव नहीं है। इन सभी पुद्गल भावों को 'हमें' देखना और जानना है, वह आत्मभाव है। ज्ञाता - दृष्टा और परमानंद वही आत्मभाव है। पुद्गलभाव तो अंतहीन हैं। लोग पुद्गलभाव में ही फँसे हुए हैं।