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________________ आप्तवाणी-३ २७ परमाणु : असर अलग, कषाय अलग यह शरीर परमाणुओं का बना हुआ है। कितने ही गरम, कितने ही ठंडे, ऐसे तरह-तरह के परमाणु हैं। गरम परमाणु उग्रता लाते हैं। ये उग्र परमाणु जब फूटते हैं, तब अज्ञान के कारण खुद उनमें तन्मयाकार हो जाता है, इसे क्रोध कहा है। लोभ कब होता है? किसी भी वस्तु को देखकर आसक्ति के परमाणु उठते हैं और उसमें आत्मा तन्मयाकार हो जाए, तब लोभ उत्पन्न होता है। किसीने 'नमस्ते-नमस्ते' किया तो मिठास, ठंडक उत्पन्न होती है और उसमें आत्मा तन्मयाकार हो जाए तो उसे मान कहते हैं। और यदि इन सभी परमाणुओं की अवस्था में आत्मा तन्मयाकार नहीं हो और अलग ही रहे तो उसे क्रोध-मान-माय-लोभ नहीं कहते। वह तो सिर्फ उग्रता कहलाती है। जिस क्रोध में तांता (तंत) और हिंसकभाव नहीं होते, उसे क्रोध नहीं कहते। और जहाँ पर मुहँ से कुछ बोलते-करते नहीं, लेकिन अंदर तंत और हिंसकभाव है, उसे भगवान ने क्रोध कहा है। इस तंत से ही दुनिया विद्यमान है। क्रोध का तंत, मान का तंत, कपट का तंत, लोभ का तंत- ये तंत जाएँ तो कषाय मृतपाय हो जाते हैं। प्रश्नकर्ता : 'क्रोध में आत्मा तन्मयाकार होता है', यह समझ में नहीं आया। दादाश्री : क्रोध में प्रतिष्ठित आत्मा तन्मयाकार होता है। मूल आत्मा तन्मयाकार नहीं होता, बिलीफ़ आत्मा तन्मयाकार होता है। यह तो परमाणुओं का साइन्स है। भाना (पसंद) और नहीं भाना (नापसंद) ये परमाणुओं का इफेक्ट है। कुछ लोगों को चाय देखते ही पीने की इच्छा होती है और कुछ को तो ज़रा भी इच्छा नहीं होती, वह क्या है? अंदर से परमाणु माँगते हैं, इसलिए। फर्स्ट गलन, सेकन्ड गलन ये खाना-पीना वगैरह जो-जो दिखता है, वे सब पर-परिणाम हैं और फिर गलन के रूप में है। गलन के रूप को लोग ऐसा समझते हैं कि, 'मैंने खाया, मैंने पीया।' प्रश्नकर्ता : खाया, उसे तो पूरण नहीं कहते?
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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