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आप्तवाणी-३
परमाणुओं की अवस्था, कौन कौन-सी? पूरा जगत् पुद्गल परमाणुओं से भरा हुआ है। शुद्ध स्वरूप में रहे हुए परमाणुओं को तीर्थंकर भगवान ने विश्रसा कहा है। अब संयोगों के दबाव से किसी पर गुस्सा आ जाए, तब उस समय 'मैं चंदूलाल हूँ और मैंने यह किया' ऐसा जो ज्ञान है, उसके कारण बाहर के परमाणु खिंचते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो भ्रांति से आत्मा पुद्गल की अवस्था में तन्मयाकार हो जाता है, उन भास्यमान परिणामों को खुद के मानता है, उससे परमाणु 'चार्ज' होते हैं। प्रयोग हुआ इसलिए इसे प्रयोगसा कहा जाता है। यह प्रयोगसा 'कॉज़ल बॉडी' के रूप में रहता है। वह अगले जन्म में फिर मिश्रसा बन जाता है अर्थात् इफेक्टिव बॉडी बन जाता है। अब ‘साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स' के आधार पर जब यह प्रयोगसा परमाणु डिस्चार्ज होते हैं, तब कड़वे-मीठे फल देकर जाते हैं, उस समय वे मिश्रसा कहलाते हैं। डिस्चार्ज हो जाने के बाद में वापस शुद्ध होकर विश्रसा हो जाते हैं।
दान देते समय 'मैं दान दे रहा हूँ' ऐसा भाव रहता है, उस समय पुण्य के परमाणु खिंचते हैं। और खराब काम करते समय पाप के खिंचते हैं। वे फिर फल देते समय शाता फल देते हैं या अशाता (दु:ख परिणाम) फल देते हैं। जब तक अज्ञानी है तब तक फल भोगता है, सुख-दुःख भोगता है, जब कि ज्ञानी इसे भोगते नहीं हैं, सिर्फ 'जानते' ही हैं।
पुद्गल अवस्था में आत्मा अज्ञानभाव से अवस्थित हुआ, वह प्रयोगसा है। बाद में व्यवस्थित' उसका फल देता है, तब मिश्रसा कहलाता है। प्रयोगसा होने के बाद में फल देना व्यवस्थित के ताबे में चला जाता है। फिर टाइमिंग, क्षेत्र, इन सभी ‘साइन्टिफिक सरमकस्टेन्शियल एविडन्स' के मिलने पर रूपक में आता है। ‘स्वरूप का ज्ञान' हो जाए तो खुद इस पुद्गल की करामात में तन्मयाकार नहीं होता, अत: नया प्रयोगसा नहीं होता। जो पुराने हैं, उनका समभाव से निकाल (निपटारा) करना बाकी बचता है।