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________________ आप्तवाणी-३ करामात सारी पुद्गल की ही ज्ञान आत्मा का है और करामात सभी पुद्गल की है। आत्मा ऐसी करामात नहीं करता। हिमालय में बर्फ गिर रही हो तो एकदम महावीर का 'स्टेच्यू' जैसा बन जाए! वह पुद्गल की करामात है, टेम्परेरी है। पुद्गल ऐसा सक्रिय है कि जिसके कारण तरह-तरह के परिवर्तन होते रहते हैं। यहाँ अंदर अगर छोंक लगाया हो तो सब छींकने लगते हैं। यह किसकी करामात है? आपकी तो छींक खाने की इच्छा नहीं है। यदि तू कर्ता है तो बंद कर दे न ये छींकें ! लेकिन नहीं। यह तो पुद्गल की करामात है। यह पुद्गल की करामात, बहुत गूढ़ वस्तु है। इस जगत् के लोग ऐसे पुरुषार्थी हैं कि लोहे की मोटी-मोटी साँकलों के बंधन तोड़ डालते हैं। लेकिन ये सूक्ष्म बंधन, आत्मा और पुद्गल का, उसे नहीं तोड़ सकते, और यदि उन्हें तोड़ने जाएँगे तो बल्कि और अधिक उलझ जाएँगे। पुद्गल तो कितना शक्तिशाली है !! खुद परमात्मा ही उसमें फँस गए हैं न!!! एक प्याले में ज़रा-सा जहर घोलकर पिलाओ तो क्या होगा? चेतन फटाक से भाग जाएगा! अरे, ज़हर की शक्ति तो बहुत बड़ी है, लेकिन यदि इन्कमटैक्स की एक छोटी-सी चिट्ठी आई हो तो अंदर घबराहट हो जाती है। साहब को गालियाँ देने लगता है। खोलकर देखे तो रिफन्ड आया हो, ऐसा होता है ! पुद्गल भी चेतन को हिला देता है। सुबह उठ जाते हैं, चिंता हो जाती है, क्रोध हो जाता है, यह सब क्या है? खेत में बीज डालकर आएँ तो वह अनेक गुना होकर वापस आता है। त्यागी त्याग करते हैं, वह अनेक गुना होकर आता है। राग से त्याग करो या द्वेष से त्याग करो, उसका 'रिएक्शन' आए बगैर रहेगा ही नहीं। पुद्गल की करामात ऐसी है कि आप जिस वस्तु का घृणापूर्वक तिरस्कार करोगे, वह वापस कभी भी नहीं मिलेगी। इस जन्म में तो शायद मिल जाए, लेकिन अलगे जन्म में नहीं मिलेगी।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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