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पूरे जगत् के प्रति अन्सिन्सियर, परन्तु ज्ञानी प्रति सिन्सियर रहा तब भी वह मुक्त हो जाएगा।
व्यवहार आदर्श हो जाएगा, तभी मोक्ष में जाया जा सकेगा। आदर्श व्यवहार अर्थात् किसी भी जीव को किंचित् मात्र भी दुख नहीं हो। ज्ञानी का व्यवहार आदर्श होता है। सद्व्यवहार अहंकार सहित होता है। शुद्ध व्यवहार अहंकार रहित होता है। गच्छमत संप्रदाय, शुद्ध व्यवहार में नहीं होते। शुद्ध व्यवहार से ही मोक्ष है। 'ज्ञानी' के पास से बात को सही, समझपूर्वक समझकर 'स्वरूप ज्ञान प्राप्त करके व्यवहार शुद्ध करके संसार जंजाल में से छूट जाने जैसा है।
वीतरागधर्म ही सर्व दु:खों से छुड़वाता है।