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प्रामाणिकता से एक प्रकार की मुश्किल आती है तो अप्रामाणिकता से दो प्रकार की आती है। प्रामाणिकता की मुश्किलों से छूटा जा सकता है, परन्तु अप्रामाणिकता की मुश्किलों से छूटना मुश्किल है। प्रामाणिक तो बहुत बड़ा धर्मिष्ठ कहलाता है।
___ व्यापार में मन बिगडेंगे तो भी उतना ही फायदा है और मन साफ रखेगा तो भी उतना ही फायदा मिलेगा, ऐसा है।
"व्यपार में धर्म रखना, नहीं तो अधर्म घुस जाएगा।"
"व्यापार में धर्म होना चाहिए, लेकिन धर्म में व्यापार नहीं होना चाहिए।" "नोबल किफायत करो।"
- दादा भगवान घर में किफायत ऐसी करनी चाहिए कि बाहर ख़राब नहीं दिखे।
उदार किफायत होनी चाहिए। रसोई में तो किफायत करनी ही नहीं चाहिए, बाकी सभी जगह कर सकते हैं!
हर एक जीव कुदरत का मेहमान है। मेहमान को कुछ चिंता-उपाधि करनी होती है? जहाँ जन्म से पहले ही डॉक्टर, दाई और दूध की व्यवस्था हो जाती है, वहाँ पर किसलिए हाय-हाय करनी? मेहमान को मात्र मेहमान जैसा विनय रखना चाहिए। भोजन में जो मिले, जैसा मिले, जब मिले, उसमें कमी निकाले बिना खा लेना चाहिए। सोने को कहे, उठने को कहे उसके अनुसार रहना चाहिए।
शुभमार्ग पर जाना हो या अशुभमार्ग पर, उन दोनों को ही कुदरत तो कहती है, 'आइ विल हेल्प यू!'
जहाँ पर सिन्सीयारिटी और मोरेलिटी होती है, वहाँ पर तमाम धर्मों का सार आ जाता है। मोरालिटी अर्थात् खुद के हक़ का और आसानी से मिल जाए वह सभी भोगने की छूट है। जो परायों के प्रति सिन्सियर रहा वह खुद अपने आप के प्रति सिन्सियर रह पाएगा। 'ज्ञानीपुरुष' का राजीपा और सिन्सियारिटी, बस इतना ही हो तो उसका काम निकल जाएगा।
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