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________________ 'एडजस्टमेन्ट' लिए जाएँगे उतनी उसकी शक्ति विकसित होगी। सामनेवाले से सौ भूलें हो जाएँ, फिर भी वहाँ न्याय या नियम नहीं देखना है। किस तरह से समाधान हो, वही देखना है। कुदरत के न्याय से बाहर तो कुछ भी नहीं होनेवाला! हर एक के विचारों की स्पीड अलग-अलग होती है। कम 'रिवोल्यूशन वाले को अधिकवाले की बात नहीं पहुँच पाती। इसलिए अधिक रिवोल्यूशनवाले को बीच में 'काउन्टरपुली' डालना सीख लेना चाहिए। फिर टकराव नहीं होगा। किच-किच करने से दोनों का बिगड़ता है! सम्यक् तरीके से कहना नहीं आए तो मौन बेहतर है! टोकना इस तरह से चाहिए की जिससे सामनेवाले को दुःख नहीं हो। नहीं तो टोकना बंद कर देना चाहिए। टकराव की जगह पर, टोकने के बदले प्रतिक्रमण करना, वह उत्तम उपाय है। अबोला (बोलचाल बंद करना) से बात का सोल्यूशन नहीं हो पाता, लेकिन समभाव से निकाल करने से ही सोल्यूशन हो पाता है। सरल के साथ में सरल तो हर कोई रहता है, लेकिन संपूर्ण असरल के सामने सरल हो जाए तो जग जीता जा सकता है! कोई लाल झंडी दिखाए तो उसका दोष नहीं देखकर, मेरी क्या भूल हुई है, उसकी खोज में लग जाए तो नया दोष बँधना रुक जाएगा और खुद का पुराना दोष चला जाएगा। वास्तव में खुद अपनी ही भूल के कारण सामनेवाला लाल झंडी दिखाता है। घर में झगड़ा करना ही नहीं चाहिए और सामनेवाला चाहे कितना भी झगड़ा करता हुआ आए, लेकिन हमें ऐसा 'झगड़ाप्रूफ' बन जाना चाहिए कि हमें कुछ भी झंझट ही नहीं हो। जिसके साथ झगड़ा हो जाए और यदि दो घंटे बाद वापस उसके साथ बोले बगैर चले नहीं, तो वहाँ पर झगड़ने का क्या अर्थ है? आमने-सामने शंका करने से विस्फोट होता है! 'मेरी-मेरी' कहकर ममता से लपेटा है, उसे 'नहीं है मेरी, नहीं है
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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