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________________ समुद्र में इतने सारे जीव हैं, फिर भी कोई शिकायत करता है कि मुझे यह दुःख है? और सिर्फ ये मनुष्य ही रात-दिन 'मुझे यह दुःख है, और वह दुःख है' की शिकायत करते रहते हैं ! किसी पक्षी का अस्पताल देखा है? किसी जानवर को नींद की गोली खानी पड़ती है? और सिर्फ इन मनुष्यों की ही नींद हराम हो गई है कि नींद के लिए गोलियाँ खानी पड़ती हैं! मनुष्य अवतार मोक्ष प्राप्त करने के लिए ही है और वह यदि नहीं मिले तो यह मन-वचन-काया का उपयोग औरों के लिए करने का है, 'योग-उपयोग परोपकाराय' जिसका जीवन परोपकार में बीता, उसे कोई कमी नहीं पड़ती। खुद का सुख जो दूसरों को दे देता है, उसका तो कुदरत संभाल लेती है, ऐसा नियम है। तमाम दु:खों का मूल कारण अज्ञानता है। स्वयं नामरूप बन बैठा है, इसलिए दुःख की परंपरा सर्जित हुई है। जो खुद आत्मरूप है उसे कोई दुःख नहीं है। वास्तव में दुःख है या नहीं वह यदि बुद्धि से सोचे, तो भी समझ में आए ऐसा है कि दुःख जैसा कुछ है ही नहीं। दूसरों का सुख देखकर, खुद के पास वह नहीं है-ऐसा करके नया दुःख मोल लेता है, उसके जैसी नासमझी और कोई नहीं है। सचमुच में दुःख तो यदि भोजन नहीं मिले, पानी नहीं मिले, संडास-पेशाब करने को नहीं मिले, उसे कहते हैं। जीवन जीने की चाबी ही जैसे खो नहीं गई हो, उस तरह से जीवन जीते हैं! भारत में तो 'फेमिली ऑर्गेनाइजेशन', वह एक बड़ा ज्ञान है। घर में, बाहर सभी जगह क्लेश किसलिए होते हैं, यह जानना ज़रूरी है। बच्चों को किस बारे में 'ऐन्करेजमेन्ट' देना चाहिए और किसमें नहीं, माँ-बाप को यह जानना ज़रूरी नहीं है? बच्चा बाप की मूंछ खींचे, उससे बाप खुश होकर सभी के सामने बच्चे की तारीफ़ करे, तो क्या इसे योग्य कहा जाएगा? माँ-बाप बनने से पहले, माँ-बाप बनने का योग्यता पत्र प्राप्त करना ज़रूरी होना चाहिए। शादी करने से पहले पति या पत्नी बनने का सर्टीफिकेट प्राप्त करना ज़रूरी होना चाहिए, क्योंकि माँ-बाप बनना बहुत बड़ी 33
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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