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________________ 'रिस्पोन्सिबिलिटी' है, प्रधानमंत्री से भी अधिक ! इस काल में बच्चों को छेड़ने जाएँ तो विरोध करें, ऐसे हैं । शिक्षक और माँ-ब - बाप मॉडर्न ज़माने के बच्चों की मन:स्थिति को पहचानकर एडजस्ट होकर चलें, फिर तो बच्चे विरोध करेगें ही नहीं ! बाकी खुद सुधरेंगे तभी तो दूसरे को सुधार सकेंगे । घर में, बाहर सभी जगह व्यवहार सभी करना है, कहना - करना सभी कुछ, लेकिन वह कषाय रहित होना चाहिए। और यही कला 'ज्ञानीपुरुष' से सीखने जैसी है ! सुधारने के लिए किच-किच करने से तो बल्कि सब बिगड़ता है, उसके बजाय किच-किच करना ही बंद हो जाए, तभी से सामनेवाला व्यक्ति सुधरने लगेगा। किसीके साथ बखेड़ा हो जाए, तो फिर उसके मन में गाँठ पड़ जाती है। तब 'मौन' पकड़कर उसे विश्वास में लेना, वही श्रेष्ठ उपाय है। बच्चों को सुधारना हो तो घर में ६-१२ महीनों तक मौन ले लेना चाहिए। बच्चे पूछें, उतना ही उसका जवाब देना चाहिए। और अंदर उनके खूब - खूब प्रतिक्रमण करने चाहिए । सुधारने के बजाय अच्छी भावना करते रहना चाहिए। बाकी ‘ज्ञानीपुरुष' के अलावा अन्य कोई किसीको सुधार नहीं सकता। जो बिन माँगी सलाह देता है, वह मूर्ख माना जाता है। कोई माँगे तभी सलाह देनी चाहिए । ये सभी 'रिलेटिव' संबंध हैं । उन्हें 'रियल' मानोगे तो मार खाने की बारी आएगी। बच्चों को तरीक़े से प्यार करना चाहिए, उन्हें छाती से दबाते नहीं रहना चाहिए! उससे तो बच्चा घबराकर काट लेगा ! पैसे नल में से पानी की तरह खर्च करने हैं, बच्चों को ऐसा नहीं लगना चाहिए। बच्चों का अहंकार जागृत होने के बाद माँ-बाप उसे कुछ भी नहीं कह सकते। फिर तो ठोकर खाकर जो भी सीखे वही ठीक । जहाँ सभी कुछ करना अनिवार्य है, ऐसे संसार में जिसे खुद का माना, उसीके 34
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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