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________________ पूर्णरूप से देता है। वास्तव में दुःख किसे कहते हैं? जीवन की आधारभूत ज़रूरतें-रोटी, कपड़े, मकान और पत्नी इतना नहीं मिले, फिर भी उसे दुःख नहीं कहा जाता, अड़चन कहा जाता है । वास्तव में जो दुःख है, वह अज्ञानता का ही है। अपने पास कितनी संपत्ति है? करोड़ रुपये खर्च करने से भी ऐसी आँखें प्राप्त की जा सकती हैं? तब फिर दांत, नाक, हाथ, पैर, इन सबकी क़िमत कितनी अधिक होगी !!! ज्ञानी ग़ैरज़रूरी चीज़ों में कभी भी नहीं उलझते । उनके पास से कोई घड़ी या रेडियो की कंपनी ने लाभ नहीं उठाया । ग़ैरज़रूरी चीज़ को खरीदना और ज़रूरत की चीज़ में कमी करना, ऐसी लोगों की दशा हो गई है! इस दुनिया में मुफ्त चीज़ ही सबसे महंगी पड़ती है ! मुफ्त की आदत पड़ने के बाद यदि वह नहीं मिले तो कितनी परेशानी हो जाए ? ! जो सुख की दुकान खोलता है उसे सुख ही मिलता है, और जो दुःख की खोलता है उसे दुःख ही मिलता है । 'ज्ञानी' की दुकान की तो बात ही क्या करनी?! सामनेवाला गालियाँ दे, फिर भी उसे आशीर्वाद देते हैं! सप्ताह में एक दिन भी यदि किसीको दुःख नहीं देने में और किसीका दिया हुआ दुःख स्वीकार नहीं करने में बीते, तब भी बहुत प्रगति की शुरूआत होगी। 'इस जगत् में किसी भी जीव को किंचित् मात्र भी मुझसे दुःख नहीं हो, नहीं हो, नहीं हो ।' यह भावना रोज़ होने लगे तो वही सबसे बड़ी कमाई है। संसार यानी आमने-सामने हिसाब चुकाने का स्थल । इसमें कहीं भी किसीके साथ बैर नहीं बंधे, उतना ही देख लेना है । 'समभाव से निकाल' करना वही सबसे बड़ी चाबी है, निर्वैर रूप से निकल जाने के लिए ! थाली में जो आया, वह अपने ही 'व्यवस्थित' के नियम के आधार पर हमें आ मिलता है। इस तरह से जो सहज रहे, उसे कोई परेशानी नहीं होती । 32
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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