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________________ २४८ आप्तवाणी-३ अनाड़ी नहीं तो क्या है? भगवान महावीर को कर्म खपाने के लिए साठ मील चलकर अनार्य क्षेत्र में जाना पड़ा था, और आज के लोग पुण्यवान इसलिए घर बैठे अनार्य क्षेत्र है! कैसे धन्य भाग्य! यह तो अत्यंत लाभदायक है कर्म खपाने के लिए, यदि सीधा रहे तो। एक घंटे का गुनाह, दंड जिंदगी पूरी एक घंटे नौकर को, बच्चे को या पत्नी को झिड़का हो-धमकाया हो, तो वह फिर पति बनकर या सास बनकर आपको सारी जिंदगी कुचलते रहेंगे! न्याय तो चाहिए या नहीं चाहिए? यह भुगतने का है। आप किसीको दुःख दोगे तो दुःख आपके लिए पूरी जिंदगी का आएगा। एक ही घंटा दुःख दो तो उसका फल पूरी जिंदगी मिलेगा। फिर शोर मचाते हो कि, 'पत्नी मुझे ऐसा क्यों करती है?' पत्नी को ऐसा होता है कि, 'पति के साथ मुझसे ऐसा क्यों होता है?' उसे भी दुःख होता है, लेकिन क्या हो? फिर मैंने उनसे पूछा कि 'पत्नी आपको ढूँढ लाई थी या आप पत्नी को ढूँढ लाए थे?' तब वह कहता है कि 'मैं ढूँढ लाया था।' तब उसका क्या दोष बेचारी का? ले आने के बाद उल्टा निकले, उसमें वह क्या करे? कहाँ जाए फिर? कुछ पत्नियाँ तो पति को मारती भी हैं। पतिव्रता स्त्री को तो ऐसा सुनने से भी पाप लगता है कि पत्नी ऐसे पति को मारती है। प्रश्नकर्ता : जो पुरुष मार खाए तो वह स्त्री जैसा कहलाएगा न? दादाश्री : ऐसा है, मार खाना कोई पुरुष की कमज़ोरी नहीं है। लेकिन उसके ये ऋणानुबंध ऐसे होते हैं, पत्नी दु:ख देने के लिए ही आई होती है, वह हिसाब चुकाएगी ही। पगला अहंकर, तो लड़ाई-झगड़ा करवाए संसार में लड़ाई-झगड़े की बात ही नहीं करनी, वह तो रोग कहलाता है। लड़ना वह अहंकार है, खुला अहंकार है, वह पागल अहंकार कहलाता है। मन में ऐसा मानता है कि 'मेरे बिना चलेगा नहीं।' किसीको डाँटने में तो अपने को उल्टा बोझा लगता है, निरा सिर पक जाता है। लड़ने का किसीको शौक होता होगा?
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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