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"प्रकृति का एक भी गुण 'शुद्ध चेतन' में नहीं है और 'शुद्ध चेतन' का एक भी गुण प्रकृति में नहीं है। गुणों को लेकर वे दोनों सर्वथा भिन्न ही हैं।"
___ - दादा भगवान पहले अज्ञान से मुक्ति और बाद में अज्ञान से खड़े होनेवाले 'इफेक्ट्स ' से मुक्ति प्राप्त करनी है।
आत्मद्रव्य नहीं बदलता परन्तु 'व्यवहार आत्मा' को संसारी भाव से जो द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव स्पर्श किए हुए हैं, वे सभी एक-दूसरे के आधार पर बदलते रहते हैं।
राग-द्वेष, वे 'रोंग बिलीफ़' से उत्पन्न होते हैं। वह आत्मा का स्वभाव या गुण नहीं है।
'रिलेटिव' में आत्मा और 'रियल' में परमात्मा। 'रिलेटिव' की भजना करे तो 'खुद' विनाशी है और 'रियल' की भजना करे 'वह' 'परमात्मा' है!
जीवमात्र में चेतन एक स्वभावी ही है। परन्तु आवरण में फर्क
अविनाशी की चिंतवना से अंतर्मुखी हुआ जाता है और विनाशी की चिंतवना से बहिर्मुखी हुआ जाता है।
मोक्ष जाने का सरल रास्ता अर्थात् मोक्ष के राहबर के पीछे-पीछे चलते जाना, वह।
जब तक मन-वचन-काया की ममता है, तब तक समता कहाँ से आएगी?
बाह्य किसी भी निमित्त से, पंचेन्द्रियों से, मान-तान, लक्ष्मी, विषयों से सुख नहीं हो, फिर भी अंदर का जो सुख बरते, वह आत्मा का सुख है। जब तक विषयों का सेवन है तब तक आत्मा का स्पष्ट सुख वेदन में नहीं आ सकता।
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