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________________ २३८ आप्तवाणी-३ इसीलिए मजबूरन जाना पड़ रहा है!' तब वह सामने से कहेगा कि तब तो आप जाओ, जाओ, कोई परेशानी नहीं है। यह तो तेरी ही भूल के कारण लोग लाल झंडी दिखाते हैं। लेकिन यदि तू उसका खुलासा करे तो जाने देंगे। लेकिन यह तो कोई लाल झंडी दिखाए तब फिर मूर्ख शोर मचा देता है, 'जंगली, जंगली, बेअक्ल, लाल झंडी दिखाता है?' ऐसे डाँटता है। अरे, यह तो तूने नया खड़ा किया। कोई लाल झंडी दिखाता है अर्थात् 'देयर इज़ समथिंग रोंग।' कोई ऐसे ही लाल झंडी नहीं दिखाता। झगड़ा, रोज़ तो कैसे पुसाए? दादाश्री : घर में झगड़े होते हैं? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : माइल्ड होते हैं या सचमुच में होते हैं? प्रश्नकर्ता : सचमुच में भी होते हैं, परंतु दूसरे दिन भूल जाते हैं। दादाश्री : भूल नहीं जाओ तो करोगे क्या? भूल जाएँ तो भी वापस झगड़ा होता है न? यदि भूलते नहीं तो वापस झगड़ा कौन करता? बड़ेबडे बंगलों में रहते हैं, पाँच लोग रहते हैं, फिर भी झगड़ा करते हैं। कुदरत खाने-पीने का देती है, तब भी लोग झगड़ा करते हैं ! ये लोग झगड़े, क्लेश, कलह करने में सूरमा हैं। जहाँ लड़ाई-झगड़े हैं, वह अंडरडेवेलप्ड प्रजा है। सार निकालना आता नहीं, इसलिए लड़ाई-झगड़े होते हैं। जितने मनुष्य हैं उतने अलग-अलग धर्म हैं। लेकिन खुद के धर्म का मंदिर बनाए किस तरह? बाकी, धर्म तो हरएक के अलग हैं। उपाश्रय में सामायिक करते हैं, वह भी हरएक की अलग-अलग होती हैं। अरे, कितने तो पीछे बैठे-बैठे कंकड़ मारा करते हैं, वे भी उनकी सामायिक ही करते हैं न? इसमें धर्म रहा नहीं, मर्म रहा नहीं। यदि धर्म भी रहा होता तो घर में झगड़े नहीं होते। होते तो भी महीने में एकाध बार होते। अमावस
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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