SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-३ २३९ महीने में एक दिन ही आती है न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : ये तो तीसों दिन अमावस। झगड़े में क्या मिलता होगा? प्रश्नकर्ता : नुकसान मिलता है। दादाश्री : घाटे का व्यापार तो कोई करता ही नहीं न! कोई नहीं कहता कि नुकसान का व्यापार करो! कुछ तो नफा कमाते होंगे न? प्रश्नकर्ता : झगड़े में आनंद आता होगा! दादाश्री : यह दूषमकाल है इसलिए शांति रहती नहीं है, वह जला हुआ दूसरे को जलाए तब उसे शांति होती है। कोई आनंद में हो, वह उसे अच्छा नहीं लगता, इसलिए पलीता दागकर वह जाए, तब उसे शांति होती है। ऐसा जगत् का स्वभाव है। बाकी, जानवर भी विवेकवाले होते हैं, वे झगड़ते नहीं हैं। कुत्ते भी खुद के मुहल्लेवाले हों उनके साथ अंदरअंदर नहीं झगड़ते हैं। बाहर के मुहल्लेवाले आएँ तब सब साथ मिलकर उनके साथ लड़ते हैं। जब कि ये मूर्ख अंदर-अंदर लड़ते हैं। ये लोग विवेकशून्य हो गए हैं। 'झगड़ाप्रूफ' हो जाने जैसा है प्रश्नकर्ता : हमें झगड़ा नहीं करना हो, हम कभी भी झगड़ा ही नहीं करते हों फिर भी घर में सब सामने से रोज़ झगड़े करते रहें तो वहाँ क्या करना चाहिए? दादाश्री : आपको झगड़ाप्रूफ हो जाना चाहिए। झगड़ाप्रूफ होंगे तभी इस संसार में रह पाएँगे। हम आपको झगड़ाप्रूफ बना देंगे। झगड़ा करनेवाला भी ऊब जाए, ऐसा हमारा स्वरूप होना चाहिए। वर्ल्ड में कोई भी हमें डिप्रेस न कर सके ऐसा होना चाहिए। हमारे झगड़ाप्रूफ हो जाने के बाद झंझट ही नहीं न? लोगों को झगड़े करने हों, गालियाँ देनी हो तब भी हर्ज नहीं और फिर भी बेशर्म नहीं कहलाएँगे, बल्कि जागृति बहुत बढ़ेगी।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy