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________________ आप्तवाणी-३ २३७ है। फिर भी ध्यान नहीं रहा और कुत्ता घुस गया, तब कहो कि 'मुझे ध्यान नहीं रहता।' उसका हल तो लाना पड़ेगा न? हमें खुद को भी किसी ने ध्यान रखने का सौंपा हो और हम ध्यान रखें, फिर भी नहीं रहा तो कह देते हैं कि 'भाई यह नहीं रह सका हमसे।' ऐसा है न, 'हम बड़ी उम्र के हैं', ऐसा ध्यान नहीं रहे तब काम होगा। बालक जैसी अवस्था हो तो समभाव से निकाल अच्छा होता है। हम तो बालक जैसे हैं, इसलिए जैसा होता है हम वैसा कह देते हैं, ऐसे भी कह देते हैं और वैसे भी कह देते हैं, बहुत बड़प्पन क्या करना? जिसे कसौटी हो, वे पुण्यवान कहलाते हैं ! इसलिए उकेल लाना, झक नहीं पकडनी है। आपको अपने आप अपना दोष कह देना चाहिए। नहीं तो वे कहते हो तब आपको खुश होना चाहिए कि 'ओहोहो! आप मेरा दोष जान गए! बहुत अच्छा किया! आपकी बुद्धि हम नहीं जानते थे।' ...सामनेवाले का समाधान कराओ न? कोई भूल होगी, तो सामनेवाला कहता होगा न? इसलिए भूल खत्म कर डालो न! इस जगत् में कोई जीव किसीको तकलीफ़ नहीं दे सकता, ऐसा स्वतंत्र है, और तकलीफ़ देते हैं वह पूर्व की दख़ल की हुई थी इसलिए। उस भूल को मिटा दो फिर हिसाब रहेगा नहीं। कोई 'लाल झंडी' दिखाए तो समझ जाना कि इसमें आपकी ही कोई भूल है। यानी आपको उसे पूछना चाहिए कि भाई 'लाल झंडी' क्यों दिखा रहे हो? तब वह कहे कि, 'आपने ऐसा क्यों किया था?' तब उससे माफ़ी माँग लेना और कहना कि 'अब तू हरी झंडी दिखाएगा न?' तब वह हाँ कहेगा। हमें कोई लाल झंडी दिखाता ही नहीं। हम तो सभी की हरी झंडी देखते हैं, उसके बाद आगे चलते हैं। कोई एक व्यक्ति भी निकलते समय यदि लाल झंडी दिखाए तो उसे पूछते हैं कि भाई तू क्यों लाल झंडी दिखा रहा है? तब वह कहे कि आप तो उस तारीख को जानेवाले थे, लेकिन पहले क्यों जा रहे हैं? तब हम उसे समझाते हैं कि, 'यह काम आ पड़ा
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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