________________
२३०
आप्तवाणी-३
जाता है कि यह रोज़ छेड़ता है, यह नालायक है, बेशर्म है। यह बात समझने जैसी है। कुछ भी झंझट करना नहीं है, एडजस्ट एवरीव्हेर।
नहीं तो व्यवहार की गुत्थियाँ रोकती हैं पहले यह व्यवहार सीखना है। व्यवहार की समझ के बिना तो लोग तरह-तरह की मार खाते हैं।
प्रश्नकर्ता : अध्यात्म में तो आपकी बात के बारे में कुछ कहना ही नहीं है। परंतु व्यवहार में भी आपकी बात टॉप की बात है।
दादाश्री : ऐसा है न, कि व्यवहार में टोप का समझे बिना कोई मोक्ष में गया नहीं है, चाहे जितना बारह लाख का आत्मज्ञान हो, लेकिन व्यवहार समझे बिना कोई मोक्ष में गया नहीं। क्योंकि व्यवहार छुड़वानेवाला है न? वह न छोड़े तो आप क्या करोगे? आप शुद्धात्मा हो ही, परंतु व्यवहार छोड़े तब न? आप व्यवहार को उलझाते रहते हो। झटपट निबेड़ा लाओ न!
इन भैया से कहा हो कि 'जा, दुकान से आइस्क्रीम ले आ।' लेकिन वह आधे रास्ते से ही वापस आ जाए। आप पूछो, 'क्यों?' तो वह कहे, 'रास्ते में गधा मिल गया इसलिए, अपशुकन हो गया।' अब इसे ऐसा उल्टा ज्ञान हुआ है, उसका आपको निकाल करना चाहिए न? उसे समझाना चाहिए कि 'भाई, गधे में भगवान रहे हुए हैं, इसलिए कोई अपशकन नहीं होता। तू गधे का तिरस्कार करेगा तो उसमें रहे हए भगवान को पहुँचता है, उससे तुझे भयंकर दोष लगता है। वापस ऐसा नहीं होना चाहिए।' इस तरह से यह उल्टा ज्ञान हुआ है। इसके आधार पर एडजस्ट नहीं हो सकते।
___काउन्टरपुली-एडजस्टमेन्ट की रीति
हमें पहले अपना मत नहीं रखना चाहिए। सामनेवाले से पूछना चाहिए कि इस बारे में आपका क्या कहना है? सामनेवाला अपना पकड़कर रखे तो हमें अपना छोड देना चाहिए। हमें तो इतना ही देखना है कि किस रास्ते सामनेवाले को दुःख न हो। अपना अभिप्राय सामनेवाले पर थोपना