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________________ आप्तवाणी-३ कह रहा हो उसके साथ और गलत कह रहा हो उसके साथ एडजस्ट हो। हमें कोई कहे, 'आपमें अक्ल नहीं है', तो हम उसके साथ तुरंत एडजस्ट हो जाएँगे और उसे कहेंगे कि 'यह तो पहले से ही नहीं थी ! तू अभी कहाँ खोजने आया है? तुझे तो आज उसका पता चला, लेकिन मैं तो बचपन से ही जानता हूँ।' ऐसा कहें तो झंझट मिट गई न? फिर वह हमारे पास अक्ल ढूँढने आएगा ही नहीं। ऐसा नहीं करें तो 'अपने घर' कब पहुँच पाएँगे? २२९ हम यह सरल और सीधा रास्ता बता देते हैं और ये टकराव क्या रोज़-रोज़ होते हैं? वह तो जब अपने कर्म का उदय हो तब होता है, उतना ही हमें एडजस्ट करना है । घर में लीला (पत्नी) के साथ झगड़ा हुआ हो तो झगड़ा होने के बाद लीला को होटल में ले जाकर, खाना खिलाकर खुश कर देना, अब ताँता नहीं रहना चाहिए । एडजस्टमेन्ट को हम न्याय कहते हैं । आग्रह - दुराग्रह, वह कोई न्याय नहीं कहलाता। किसी भी प्रकार का आग्रह न्याय नहीं है । हम किसी का आग्रह नहीं पकड़ते। जिस पानी से मूँग गलें उससे गला लें, अंत में गटर के पानी से भी गला लें !! डाकू मिल जाए और उसके साथ डिसएडजस्ट नहीं होंगे तो वे मारेंगे। उसके बदले हम निश्चित करें कि उसके साथ एडजस्ट होकर काम लेना है। फिर उसे पूछे कि भाई तेरी क्या इच्छा है? देख भाई हम तो यात्रा करने निकले हैं। ऐसे उसके साथ एडजस्ट हो जाते हैं । यह बाँद्रा की खाड़ी बदबू मारे तो उसे क्या लड़ने जाते हैं? वैसे ही ये मनुष्य बदबू मारते हैं, उन्हें कुछ कहने जाना चाहिए? बदबू मारनेवाले सभी खाड़ियाँ कहलाते हैं और सुगंधी आए वे बाग़ कहलाते हैं । जो-जो बदबू मारते हैं, वे सब कहते हैं कि आप हमारे प्रति वीतराग रहो । यह एडजस्ट एवरीव्हेर नहीं होगा तो पागल हो जाओगे सब । सामनेवाले को छेड़ते रहोगे, उससे ही वे पागल होते हैं । इस कुत्ते को एक बार छेड़ें, दूसरी बार, तीसरी बार छेड़ें तब तक वह हमारी आबरू रखता है, लेकिन फिर बहुत छेड़छाड़ करें तो वह भी काट लेता है । वह भी समझ
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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