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________________ आप्तवाणी-३ २२३ और हिन्दुस्तान में जन्म हो, ऊँची जाति में जन्म हो, और यदि मोक्ष का काम नहीं निकाल लिया तो तू भटक मरा। जा तेरा सबकुछ ही बेकार गया! कुछ समझना तो पड़ेगा न? । भले मोक्ष की ज़रूरत सबको नहीं हो, लेकिन कॉमनसेन्स की ज़रूरत तो सभी को है न? यह तो कॉमनसेन्स नहीं होने से घर का खापीकर भी टकराव होते हैं। सब क्या कालाबाज़ार करते हैं? फिर भी घर के तीन लोगों में शाम तक तैंतीस मतभेद पड़ जाते हैं। इसमें क्या सुख मिला? फिर ढीठ बनकर जीता है। ऐसा स्वमानरहित जीवन किस काम का? उसमें भी मजिस्ट्रेट साहब कोर्ट में सात वर्ष की सजा ठोककर आए होते हैं, लेकिन घर में पंद्रह-पंद्रह दिन से केस पेन्डिंग पड़ा होता है। पत्नी के साथ अबोला होता है ! तब अपने मजिस्ट्रेट साहब से पूछे कि 'क्यों साहब?' तब साहब कहते हैं कि पत्नी बहुत खराब है, बिल्कुल जंगली है। अब पत्नी से पूछे, 'क्यों, साहब तो बहुत अच्छे आदमी हैं न?' तब पत्नी कहेगी, 'जाने दो न। रॉटन (सड़ा हुआ) आदमी है।' अब ऐसा सुने तब से ही नहीं समझ जाएँ कि यह सारा पोलम्पोल है जगत्? इसमें करेक्टनेस जैसा कुछ भी नहीं है। वाईफ यदि सब्जी महँगे दाम की लाई हो तो सब्जी देखकर मूर्ख चिल्लाता है, 'इतने महंगे भाव की सब्जी तो ली जाती होगी? तब पत्नी कहेगी, 'यह आपने मुझ पर अटैक किया।' ऐसा कहकर पत्नी डबल अटैक करती है। अब उसका पार कैसे आए? वाइफ यदि महँगे भाव की सब्जी ले आई हो तो आप कहना, 'बहुत अच्छा किया, मेरे धन्यभाग!', बाकी मेरे जैसे लोभी से इतना महँगा नहीं लाया जाता।' हम एक व्यक्ति के यहाँ ठहरे थे। तब उनकी पत्नी दूर से पटककर चाय रख गई। मैं समझ गया कि इन दोनों के बीच कोई खटपट हुई है। मैंने उन बहनजी को बुलाकर पूछा, 'पटका क्यों?' तो वे कहती है कि ना, ऐसा कुछ नहीं है। मैंने उसे कहा, 'तेरे पेट में क्या बात है यह मैं समझ गया हूँ। मेरे पास छुपाती है? तूने पटककर दिया तो तेरा पति भी मन में समझ गया कि क्या हकीकत है। सिर्फ यह कपट छोड़ दे चुपचाप, यदि सुखी होना हो तो।'
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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