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आप्तवाणी-३
पुरुष तो भोले होते हैं और ये स्त्रियाँ तो चालीस वर्ष पहले भी यदि पाँच-पच्चीस गालियाँ दी हों, तो वे कहकर बताती हैं कि आप उस दिन ऐसा कह रहे थे। इसीलिए सँभालकर स्त्री के साथ काम निकाल लेने जैसा है। स्त्री तो आपसे काम निकलवा लेगी। लेकिन आपको नहीं आता।
स्त्री डेढ़ सौ रुपये की साड़ी लाने को कहे तो आप पच्चीस अधिक देना। वह छह महीनों तक तो चलेगा ! समझना पड़ेगा। लाइफ तो एक कला है! यह तो जीवन जीने की कला नहीं है और पत्नी लाने जाता है! बिना सर्टिफिकेट के पति बनने गया, पति बनने की योग्यता का सर्टिफिकेट होना चाहिए, तभी बाप बनने का अधिकार है। यह तो बिना अधिकार के बाप बन गए और वापस दादा भी बनते हैं! इसका कब पार आएगा? कुछ समझना चाहिए।
रिलेटिव में, तो जोड़ना यह तो 'रिलेटिव' सगाईयाँ हैं। यदि 'रियल' सगाई हो न, तब तो हमारा ज़िद पर अड़ना काम का है कि जब तक नहीं सुधरेगी, तब तक मैं अपनी ज़िद पर अड़ा रहूँगा। लेकिन यह तो रिलेटिव! रिलेटिव मतलब एक घंटा यदि पत्नी के साथ जमकर लड़ाई हो जाए तो दोनों को डायवोर्स का विचार आ जाता है, फिर उस विचारबीज का पेड़ बनता है। आपको यदि वाइफ की ज़रूरत हो तो जब वह फाड़े तो आपको सिलते जाना है। तभी यह रिलेटिव संबंध टिकेगा, नहीं तो टूट जाएगा। बाप के साथ भी रिलेटिव संबंध है। लोग तो रियल सगाई मानकर बाप के साथ ज़िद पर अड़ जाते हैं। वह सुधरे नहीं, तब तक क्या जिद पर अड़े रहें? घनचक्कर, ऐसे करते-करते, सुधरते-सुधरते तो बूढा मर जाएगा। उससे तो उसकी सेवा कर, और बेचारा बैर बाँधकर जाए उससे अच्छा तो उसे शांति से मरने दे न! उसके सींग उसे भारी। किसी के बीस-बीस फुट लंबे सींग होते हैं। उसमें आपको क्या भार? जिसके हों उसे भार।
आपको अपना फ़र्ज़ निभाना है इसीलिए ज़िद पर मत अडना, तुरंत बात का हल ला दो। इसके बावजूद भी सामनेवाला व्यक्ति बहुत लड़े तो कहना कि मैं तो पहले से ही बेवकूफ हूँ, मुझे तो ऐसा आता ही नहीं है। ऐसा कह दिया तो वह आपको छोड़ देगा। चाहे जिस रास्ते छूट जाओ