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________________ आप्तवाणी-३ तरह से लुट गए हैं!' तब सेठ ने पूछा, 'मुझे करना क्या?' मैंने कहा, 'बात को समझो न। किस तरह जीवन जीना यह समझो। सिर्फ पैसों के ही पीछे मत पड़ो। शरीर का ध्यान रखो, नहीं तो हार्ट फेल होगा ।' शरीर का ध्यान, पैसों का ध्यान, बेटियों के संस्कार का ध्यान, सब कोने बुहारने हैं। एक कोना आप बुहारते रहते हो, अब बंगले में एक ही कोना बुहारते रहें और दूसरे सब तरफ कचरा पड़ा हो तो कैसा लगेगा? सभी कोने बुहारने हैं । इस तरह तो जीवन कैसे जी पाएँगे? २२२ कॉमनसेन्सवाला घर में मतभेद होने ही नहीं देता । वह कॉमनसेन्स कहाँ से लाए? वह तो 'ज्ञानीपुरुष' के पास बैठे, 'ज्ञानीपुरुष' के चरणों का सेवन करे, तब कॉमनसेन्स उत्पन्न होगा। कॉमनसेन्सवाला घर में या बाहर कहीं भी झगड़ा होने ही नहीं देता। इस मुंबई में मतभेदरहित घर कितने? मतभेद होता है, वहाँ कॉमनसेन्स कैसे कहलाएगा? घर में 'वाइफ' कहे कि अभी दिन है तो आप 'ना, अभी रात है ' कहकर झगड़ने लगो तो उसका कब पार आएगा? आप उसे कहो कि 'मैं तुझसे विनती करता हूँ कि रात है, ज़रा बाहर जाँच ले न!' तब भी वह कहे कि 'ना, दिन ही है ।' तब आप कहना, 'यू आर करेक्ट । मुझसे भूल हो गई।' तो आपकी प्रगति शुरू होगी, नहीं तो इसका पार आए, ऐसा नहीं है। ये तो ‘बाइपासर' ( राहगीर ) हैं सभी । 'वाइफ' भी 'बाइपासर' है । रिलेटिव, अंत में दगा समझ में आता है ये सभी ‘रिलेटिव' सगाइयाँ हैं । इसमें कोई 'रियल' सगाई है ही नहीं। अरे, यह देह ही रिलेटिव है न! यह देह ही दगा है, तो उस दगे के सगे कितने होंगे? इस देह को हम रोज़ नहलाते - धुलाते हैं, फिर भी पेट में दु:खे तो ऐसा कहना कि 'रोज़ तेरा इतना ध्यान रखता हूँ, तो आज ज़रा शांत रह न!' फिर भी वह घड़ीभर भी शांत नहीं रहता । वह तो आबरू ले लेता है। अरे, इन बत्तीस दाँतों में से एक दुःख रहा हो न तब भी वह चीखें मरवाएगा। सारा घर भर जाए उतने तो सारी ज़िंदगी में दातुन किए होंगे, रोज़ दातुन घिसते रहे होंगे, फिर भी मुँह साफ नहीं होता । वह तो, था वैसे का वैसा ही वापस । यानी यह तो दग़ा है । इसलिए मनुष्य जन्म
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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