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आप्तवाणी-३
जाता है। उससे पहले तो बाप स्वयंवर रचाते थे और उसमें वे सौ बेवकूफ आए हुए होते थे! उसमें से कन्या एक बेवकूफ को पास करती थी! इस तरह पास होकर शादी करनी हो, उससे तो शादी नहीं करना अच्छा। ये सभी बेवकूफ लाइन में खड़े रहते थे, उसमें से कन्या वरमाला लेकर निकलती थी। सब के मन में लाखों आशाएँ होती थीं, वे गरदन आगे रखा करते! इस तरह अपनी पसंद की पत्नी लाएँ, उससे तो जन्म ही न लेना अच्छा! इसीसे आज वे बेवकूफ स्त्रियों का भयंकर अपमान करके बैर वसूल रहे हैं! स्त्री को देखने जाता है तब कहता है, 'ऐसे घूम, वैसे घूम ।'
'कॉमनसेन्स' से 'सोल्युशन' आता है
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मैं सबसे ऐसा नहीं कहता कि आप सब मोक्ष में चलो। मैं तो ऐसा कहता हूँ कि जीवन जीने की कला सीखो। कॉमनसेन्स तो थोड़ा-बहुत तो सीखो लोगों के पास से ! तब सेठलोग मुझे कहते हैं कि हममें कॉमनसेन्स तो है। तब मैंने कहा, 'कॉमनसेन्स होता तो ऐसा होता ही नहीं । तू तो मूर्ख है।' सेठ ने पूछा, 'कॉमनसेन्स मतलब क्या?' मैंने कहा, 'कॉमनसेन्स यानी एवरीव्हेर एप्लिकेबल - थ्योरिटिकली एज़ वेल एज़ प्रेक्टिकली।' चाहे जैसा ताला हो, जंग लगा हुआ हो या चाहे जैसा हो लेकिन चाबी डालें कि तुरंत खुल जाए, वह कॉमनसेन्स है । आपके ताले तो खुलते नहीं, झगड़े करते हो और ताले तोड़ते हो ! अरे, ऊपर बड़ा हथौड़ा मारते हो!
मतभेद आपमें पड़ता है ? मतभेद मतलब क्या ? ताला खोलना नहीं आया, वैसा कॉमनसेन्स कहाँ से लाए ? मेरा कहना यह है कि पूरी तीन सौ साठ डिग्री का कॉमनसेन्स नहीं होता परंतु चालीस डिग्री, पचास डिग्री का तो आता है न? वैसा ध्यान में रखा हो तो? एक शुभ विचारणा पर चढ़ा हो तो उसे वह विचारणा याद आएगी और वह जागृत हो जाएगा। शुभ विचारणा के बीज पड़ें, तो फिर वह विचारणा शुरू हो जाती है। लेकिन यह सेठ तो सारे दिन लक्ष्मी के और सिर्फ लक्ष्मी के विचारों में ही घूमता रहता है! इसलिए मुझे सेठ से कहना पड़ता है, 'सेठ आप लक्ष्मी के पीछे पड़े हो? घर पूरा तहस-नहस हो गया है। बेटियाँ मोटर लेकर इधर जाती हैं, बेटे उधर जाते हैं और सेठानी इस तरफ जाती है । 'सेठ, आप तो हर