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________________ भोगता कौन है? अहंकार । आत्मा नहीं । आत्मा के चार उपयोग हैं: अशुद्ध, अशुभ, शुभ और शुद्ध उपयोग । शुद्ध उपयोगी को मोक्ष मिलता है।‘खुद शुद्धात्मा है' ऐसा निरंतर भान रहे, पूरा जगत् निर्दोष दिखे, सभी में शुद्धात्मा दिखे, वह शुद्ध उपयोग है। मन में, वाणी में और वर्तन में तन्मयाकार परिणाम नहीं रहे, उसे शुद्ध उपयोग कहते हैं । ज्ञानी का संपूर्ण शुद्ध उपयोग होता है। ज्ञानी को उपयोग में उपयोग रहता है। " शुद्ध उपयोग - वह ज्ञान स्वरूप कहलाता है और उपयोग में उपयोग-वह विज्ञान स्वरूप कहलाता है ।" - दादा भगवान केवलज्ञान अर्थात् केवल आत्मप्रवर्तन । 'एब्सोल्यूट' ज्ञान का मतलब ही केवलज्ञान है। और सिर्फ वही आनंद दे सकता है। निरंतर निज परिणति, जहाँ पुद्गल परिणति है ही नहीं - वह केवलज्ञान है I " “निज परिणति-वह आत्मभावना है, 'मैं शुद्धात्मा हूँ'-वह आत्मभावना नहीं है । ' - दादा भगवान केवलज्ञान होने तक पिंड के ज्ञेय देखने हैं और केवलज्ञान होने के बाद ब्रह्मांड के ज्ञेय झलकते हैं 1 “केवलज्ञान आकाश जैसा सूक्ष्म है, जब कि अग्नि स्थूल है। स्थूल को नहीं जला सकता। मारो, काटो, जलाओ तो भी खुद के केवलज्ञान स्वरूप को कोई भी असर हो सके ऐसा नहीं है ।" सूक्ष्म उपयोग में उपयोग बरते, वह केवलज्ञान है। खुद शुद्ध है, वह भी देखे; सामनेवाले को शुद्ध देखे, वह शुद्ध उपयोग कहलाता है और उस पर भी उपयोग रहे तो उसे उपयोग पर उपयोग कहा जाता है । 44 - - दादा भगवान 'केवलज्ञान स्वरूप कैसा दिखता है? पूरे देह में आकाश जितना जो भाग खुद का दिखे, आकाश ही दिखे अन्य कुछ भी नहीं दिखता। कोई मूर्त वस्तु उसमें नहीं होती।” - दादा भगवान 26
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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