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आप्तवाणी-३
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आप वैसा नहीं करते। ऐसा खत आया और वैसा किया आपने। यानी कि वह बैर वसूलती है। मैं आपकी कमी निकालूँ तो आप भी मेरी कमी निकालने के लिए बेताब रहते हैं ! इसलिए खरा मनुष्य तो घर की बातों में हाथ ही न डाले। वह पुरुष कहलाता है। नहीं तो स्त्री जैसा होता है। कुछ लोग तो घर में जाकर मिर्ची के डिब्बे में देखते हैं कि दो महीने हुए मिर्ची लाए थे, वह इतनी ही देर में पूरी हो गई? अरे, मिर्ची देखता है तो कब पार आएगा? वह जिसका डिपार्टमेन्ट हो उसे चिंता नहीं होती? क्योंकि वस्तु तो खर्च होती रहती है और खरीदी भी जाती है। लेकिन यह तो बिना काम के ज़्यादा अक्लमंद बनने जाता है! फिर पत्नी भी समझती है कि इनकी चवन्नी गिर गई है। माल कैसा है, वह स्त्री समझ जाती है। घोड़ी समझ जाती है कि ऊपर बैठनेवाला कैसा है, वैसे ही स्त्री सब समझ जाती है। इसके बदले तो 'भाभो भारमां तो वह लाजमां' पुरुष गरिमा में नहीं रहे तो बहू किस तरह लाज में रहे? नियम और मर्यादा से ही व्यवहार शोभा देगा। मर्यादा पार मत करना और निर्मल रहना।
प्रश्नकर्ता : स्त्री को पुरुष की कौन-सी बात में हाथ नहीं डालना चाहिए?
दादाश्री : पुरुष की किसी भी बात में दख़ल नहीं डालना चाहिए। दुकान में कितना माल लाए? कितना गया? आज देर से क्यों आए? उसे फिर कहना पड़ता है कि आज नौ बजे की गाड़ी चूक गया। तब पत्नी कहेगी कि ऐसे कैसे घूमते हो कि गाड़ी चूक जाते हो? तब फिर पति चिढ़ जाता है। उसके मन में होता है कि भगवान भी ऐसा पूछते तो उन्हें मारता। लेकिन यहाँ क्या करे अब? यानी बिना काम के दख़ल करते हैं। बासमती के चावल अच्छे पकाते हैं और फिर अंदर कंकड़ डालकर खाते हैं! उसमें क्या स्वाद आएगा? स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे को हेल्प करनी चाहिए। पति को चिंता-वरीज़ रहती हों, तो उसे किस प्रकार वह न हो, स्त्री को इस तरह से बोलना चाहिए। वैसे ही पति को भी पत्नी मुश्किल में न पड़े, ऐसा देखना चाहिए। पति को भी समझना चाहिए कि स्त्री को बच्चे घर पर कितना परेशान करते होंगे! घर में टूट-फूट हो तो पुरुष को चिल्लाना नहीं चाहिए। लेकिन फिर भी लोग चिल्लाते हैं कि पिछली बार