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आप्तवाणी-३
सबसे अच्छे एक दर्जन कप-रकाबी लेकर आया था, आपने वे सब क्यों फोड़ डाले? सब खत्म कर दिया। इससे पत्नी के मन में लगता है कि 'मैंने तोड़ डाले? मुझे क्या वे खा जाने थे? टूट गए तो टूट गए, उसमें मैं क्या करूँ? मी काय करूँ?' कहेगी। अब वहाँ भी लड़ाई-झगड़ा। जहाँ कुछ लेना नहीं और देना नहीं। जहाँ लड़ने का कोई कारण ही नहीं, वहाँ भी लड़ना?
हमारे और हीराबा के बीच कोई मतभेद ही नहीं पड़ता था। हमने उनके काम में हाथ ही नहीं डाला कभी भी। उनके हाथ से पैसे गिर गए हों, हमने देखे हों, फिर भी हम ऐसा नहीं कहते कि आपके पैसे गिर गए। उन्होंने देखा या नहीं देखा? घर की किसी बात में हम हस्तक्षेप नहीं करते थे। वे भी हमारी किसी बात में दख़ल नहीं करती थीं। हम कितने बजे उठते हैं, कितने बजे नहाते हैं, कब आते हैं, कब जाते हैं, ऐसी हमारी किसी बात में कभी भी वे हमें नहीं पूछती थी। और किसी दिन हमें कहें कि आज जल्दी नहा लेना। तो हम तुरंत धोती मँगवाकर नहा लेते थे। अरे, अपने आप ही तौलिया लेकर नहा लेते थे। क्योंकि हम समझते थे कि ये 'लाल झंडी' दिखा रही हैं, इसलिए कोई डर होगा। पानी नहीं आनेवाला हो या ऐसा कुछ हो तभी वे हमें जल्दी नहा लेने को कहेंगी, यानी हम समझ जाते। इसलिए थोड़ा-थोड़ा व्यवहार में आप भी समझ लो न, कि किसी के काम में हाथ डालने जैसा नहीं है।
फोज़दार पकडकर आपको ले जाए फिर वह जैसा कहे वैसा आप नहीं करेंगे? जहाँ बिठाए वहाँ आप नहीं बैठेंगे? आप समझते हो कि यहाँ हूँ तब तक इस झंझट में हूँ, ऐसे संसार भी फोज़दारी ही है। इसलिए उसमें भी सरल हो जाना चाहिए।
घर पर भोजन की थाली आती है या नहीं आती? प्रश्नकर्ता : आती है।
दादाश्री : भोजन चाहिए तो मिलता है, पलंग चाहिए तो बिछा देते हैं, फिर क्या? और खटिया न बिछाकर दें तो वह भी आप बिछा लेना और हल लाना। शांति से बात समझानी पड़ती है। आपके संसार के हिताहित