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________________ आप्तवाणी-३ २०५ दादाश्री : यह लक्ष्मी के कारण ही ऐसा होता है। यदि लक्ष्मी निर्मल हो, तो सब अच्छा रहता है, मन अच्छा रहता है। यह लक्ष्मी अनिष्टवाली घर में घुसी है, उससे क्लेश होता है। हमने बचपन में ही निश्चित कर लिया था कि हो सके तब तक खोटी लक्ष्मी घुसने ही नहीं देनी है। फिर भी संजोगाधीन घुस जाए तो उसे धंधे में ही रहने देना है, घर में नहीं घुसने देना है, इसलिए आज छियासठ वर्ष हुए लेकिन खोटी लक्ष्मी घुसने नहीं दी है, और घर में कभी भी क्लेश खड़ा हुआ नहीं है। घर में निश्चित किया हुआ था कि इतने पैसे से घर चलाना है। व्यापार लाखों रुपया कमाता है, परंतु यह पटेल सर्विस करने जाएँ तो क्या तन्ख्वाह मिलेगी? बहुत हुआ तो छ: सौ-सात सौ रुपये मिलेंगे। व्यापार, वह तो पुण्य का खेल है। मुझे नौकरी में जितने मिलते, उतने ही पैसे घर में खर्च कर सकते हैं, दूसरे तो व्यापार में ही रहने देने चाहिए। इन्कम टैक्सवाले की चिट्ठी आए तो आपको कहना चाहिए कि, 'वह जो रक़म थी वह भर दो।' कब कौनसा 'अटैक' हो उसका कोई ठिकाना नहीं और यदि वे पैसे खर्च कर दिए तो वहाँ इन्कम टैक्सवालों का 'अटैक' आया तो आपके यहाँ वो वाला 'अटैक' आएगा! सभी जगह अटैक घुस गए हैं न! यह जीवन कैसे कहलाए? आपको क्या लगता है? भूल लगती है या नहीं लगती? वह हमें भूल मिटानी है। प्रयोग तो करके देखो क्लेश न हो ऐसा निश्चित करो न! तीन दिन के लिए तो निश्चित करके देखो न! प्रयोग करने में क्या परेशानी है? तीन दिन के उपवास करते हैं न, तबियत के लिए? वैसे ही यह भी निश्चित तो करके देखो। घर में आप सब लोग इकट्ठे होकर निश्चित करो कि 'दादा बात करते थे, वह बात मुझे पसंद आई है, तो आज से हम क्लेश मिटाएँ।' फिर देखो। ____ धर्म किया (!) फिर भी क्लेश? जहाँ क्लेश नहीं वहाँ यथार्थ जैन, यथार्थ वैष्णव, यथार्थ शैव धर्म हैं। जहाँ धर्म की यथार्थता है, वहाँ क्लेश नहीं होता। ये घर-घर क्लेश होते हैं तो वहाँ धर्म कहाँ गया?
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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