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आप्तवाणी-३
प्रश्नकर्ता : चले जाएँगे।
दादाश्री : भगवान कुछ लोगों के यहाँ से जाते ही नहीं, परंतु क्लेश हो रहा हो, तब कहते हैं, 'चलो यहाँ से, हमें यहाँ अच्छा नहीं लगेगा।' इस कलह में मुझे अच्छा नहीं लगेगा, इसलिए देरासर और मंदिरों में जाते हैं। इन मंदिरों में भी फिर क्लेश करते हैं। मुकट, जेवर ले जाते हैं तब भगवान कहते हैं कि यहाँ से भी चलो अब। तो भगवान भी तंग आ गए
हैं
अंग्रेजों के समय में कहते थे न कि,
_ 'देव गया डुंगरे, पीर गया मक्के।' (देवी-देवता गए पहाड़ पर और पीर चले गए मक्का।)
अपने घर में क्लेश रहित जीवन जीना चाहिए। इतनी तो आप में कुशलता होनी चाहिए। दूसरा कुछ नहीं आए तो उसे समझाना चाहिए कि क्लेश होगा तो अपने घर में से भगवान चले जाएँगे, इसलिए तू निश्चय कर कि 'हमारे यहाँ क्लेश नहीं करना है।' और आप निश्चित करना कि क्लेश नहीं करना है। निश्चित करने के बाद क्लेश हो जाए तो समझना कि यह आपकी सत्ता के बाहर हुआ है। इसीलिए वह क्लेश कर रहा हो तब भी आपको ओढ़कर सो जाना चाहिए। वह भी थोड़ी देर बाद सो जाएगा, लेकिन आप भी सामने जवाब देने लगें तो?
उल्टी कमाई, क्लेश कराए। ___ मुंबई में एक ऊँचे संस्कारी कुटुंब की बहन को मैंने पूछा कि घर में क्लेश तो नहीं होता न? तब उस बहन ने कहा, 'रोज़ सुबह क्लेश के नाश्ते ही होते हैं!' मैंने कहा, 'तब आपके नाश्ते के पैसे बचे, नहीं?' बहन ने कहा, 'नहीं, वह भी वापस ब्रेड निकालनी, और ब्रेड पर मक्खन चुपड़ते जाना।' मतलब फिर क्लेश भी चलता है और नाश्ता भी चलता है! अरे, किस तरह के जीव हो?
प्रश्नकर्ता : कुछ लोगों के घर में लक्ष्मी ही उस प्रकार की होगी इसलिए क्लेश होता होगा?