________________
२०६
आप्तवाणी-३
संसार चलाने के लिए जिस धर्म की आवश्यकता है कि क्या करने से क्लेश नहीं हो, उतना ही यदि आ जाए तो भी, धर्म प्राप्त किया, ऐसा माना जाएगा।
क्लेश रहित जीवन जीना, वही धर्म है। हिन्दुस्तान में, यहाँ संसार में ही खुद का घर स्वर्ग बनेगा तो मोक्ष की बात करनी चाहिए, नहीं तो मोक्ष की बात करनी नहीं, स्वर्ग नहीं तो स्वर्ग के नज़दीक का तो होना ही चाहिए न? क्लेश रहित होना चाहिए, इसलिए शास्त्रकारों ने कहा है कि, 'जहाँ किंचित् मात्र क्लेश है वहाँ धर्म नहीं है।' जेल की अवस्था हो वहाँ डिप्रेशन नहीं, और महल की अवस्था हो वहाँ एलिवेशन नहीं, ऐसा होना चाहिए। क्लेश रहित जीवन हुआ इसलिए मोक्ष के नज़दीक आया, वह इस भव में सुखी होगा। मोक्ष हरएक को चाहिए। क्योंकि बंधन किसीको पसंद नहीं है। परंतु क्लेश रहित हुआ, तब समझना कि अब नज़दीक में अपना स्टेशन है मोक्ष का।
...तब भी हम सुल्टा करें एक बनिये से मैंने पूछा, 'आपके घर में झगड़े होते हैं?' तब उसने कहा, 'बहुत होते हैं।' मैंने पूछा, 'उसका तू क्या उपाय करता है?' बनिये ने कहा, 'पहले तो मैं दरवाज़े बंद कर आता हूँ।' मैंने पूछा, 'पहले दरवाज़े बंद करने का क्या हेतु है?' बनिये ने कहा, 'लोग घुस जाएँ तो उल्टा झगड़ा बढ़ाते हैं। घर में झगड़ने के बाद अपने आप ठंडा पड़ जाता है।' इसकी बुद्धि सही है, मुझे यह पसंद आया। थोड़ी भी अक्लवाली बात हो तो उसे हमें एक्सेप्ट करना चाहिए। कोई भोला मनुष्य तो बल्कि दरवाज़ा बंद हो तो खोल आए और लोगों से कहे, 'आओ, देखो हमारे यहाँ!' अरे, यह तो तायफा किया!
ये लट्ठबाजी करते हैं उसमें किसी की ज़िम्मेदारी नहीं, अपनी खुद की ही जोखिमदारी है। इसे तो खुद ही अलग करना पड़ेगा। यदि तू खरा समझदार पुरुष होगा तो लोग उल्टा डालते रहेंगे और तू सुल्टा करता रहेगा तो तेरा हल आएगा। लोगों का स्वभाव ही है उल्टा डालना ! तू समकिती है तो लोग अगर उल्टा डालें तो तू सीधा कर दें, तू तो उल्टा डालना ही