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आप्तवाणी-३
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कर डालो। तब कहें, 'ना, कहाँ जाएँगे?' यदि वापस एक होना है तो फिर क्यों लड़ते हो! आपको ऐसे सावधान नहीं हो जाना चाहिए? स्त्री को समझो, ऐसी जाति है कि बदलेगी नहीं, इसीलिए आपको बदलना पड़ेगा। वह सहज जाति है, वह बदले ऐसी नहीं है।
पत्नी चिढ़े और कहे, 'मैं आपकी थाली लेकर नहीं आनेवाली, आप खुद आओ। अब आपकी तबियत अच्छी हो गई है और चलने लगे हो। ऐसे तो लोगों के साथ बातें करते हो, घूमते-फिरते हो, बीड़ियाँ पीते हो
और ऊपर से टाइम हो तब थाली माँगते हो। मैं नहीं आनेवाली!' तब आप धीरे से कहना, 'आप नीचे थाली में निकालो मैं आ रहा हूँ।' वह कहती है, 'नहीं आनेवाली।' उससे पहले ही आप कह दो कि मैं आ रहा हूँ, मेरी भूल हो गई लो। ऐसा करो तो रात कुछ अच्छी बीतेगी। नहीं तो रात बिगड़ेगी। पति टिटकारी मारते यहाँ सो गए हो और पत्नी यहाँ टिटकारी मारती है। दोनों को नींद नहीं आती। सुबह वापस जब चाय-पानी होता है, तब चाय का प्याला पटककर रखकर, टिटकारी करती है या नहीं करती? वह तो यह पत्नी भी तुरंत समझ जाती है कि टिटकारी की। यह कलह का जीवन है।
क्लेश बगैर का घर, मंदिर जैसा जहाँ क्लेश हो, वहाँ भगवान का वास नहीं रहता है। इसलिए आप भगवान से कहना 'साहब, आप मंदिर में रहना, मेरे घर नहीं आइएगा!' हम और अधिक मंदिर बनवाएँगे, परंतु घर मत आइएगा!' जहाँ क्लेश न हो, वहाँ भगवान का वास निश्चित है। उसकी मैं आपको गारन्टी देता हूँ
और क्लेश तो बुद्धि और समझ से खत्म किया जा सके ऐसा है। मतभेद टले उतनी जागृति तो प्राकृतिक गुण से भी आ सकती है, उतनी बुद्धि भी आ सके ऐसा है। जान लिया, उसका नाम कि किसी के साथ मतभेद न पडे। मति पहँचती नहीं, इसलिए मतभेद होते हैं। मति फुल पहुँचे, तो मतभेद नहीं होंगे। मतभेद, वे टकराव हैं। वीकनेस हैं।
कोई झंझट हो गई हो तो आप थोड़ी देर चित्त को स्थिर करो और विचार करो तो आपको सूझ पड़ेगी। क्लेश हुआ तो भगवान तो चले जाएँगे या नहीं चले जाएँगे?