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आप्तवाणी-३
और सामने यदि पत्नी चिढ़े तो खुद चुप हो जाता है और समझ जाता है कि इससे विस्फोट होगा। इसीलिए खुद अपने में और वह उसमें। और हिन्दू तो विस्फोट करके ही रहते हैं।
बनिये की पगड़ी अलग, दक्षिणी की अलग और गुजराती की अलग, सुवर्णकार की अलग, ब्राह्मण की अलग, हरएक की अलग। चूल्हेचूल्हे का धरम अलग। सभी के व्यू पोइन्ट अलग ही हैं, मेल ही नहीं खाते। लेकिन झगड़ा न करें तो अच्छा।
मतभेद से पहले ही सावधानी ___ अपने में कलुषित भाव रहा ही न हो, उसके कारण सामनेवाले को भी कलुषित भाव नहीं होगा। यदि आप नहीं चिढ़ोगे, तब वे भी ठंडे हो जाएँगे। दीवार जैसे हो जाना चाहिए, तब फिर सुनाई नहीं देगा। हमें पचास साल हो गए लेकिन कभी भी मतभेद ही नहीं हुआ। हीराबा के हाथ से घी ढुल रहा हो, तब भी मैं देखता ही रहता हूँ। हमें तो उस समय ज्ञान हाज़िर रहता है कि वे घी ढोल ही नहीं सकतीं। मैं कहूँ कि ढोलो तब भी नहीं ढोलें। जान-बूझकर कोई घी ढोलता होगा? ना। फिर भी घी ढुलता है, वह देखने जैसा है, इसलिए देखो! हमें मतभेद होने से पहले ज्ञान ऑन द मोमेन्ट हाज़िर रहता है।
'मेरी हालत मैं ही जानता हूँ बोले, तो बीवी खुश हो जाती है और हमारे लोग तो हालत या कुछ भी कहते नहीं हैं। अरे तेरी हालत कह तो सही कि अच्छी नहीं है। इसलिए खुश रहना।'
सबकी हाज़िरी में, सूर्यनारायण की साक्षी में, पुरोहित की साक्षी में शादी की थी, तब पुरोहित ने सौदा किया कि 'समय वर्ते सावधान' तो तुझे सावधान रहना भी नहीं आया? समय के अनुसार सावधान रहना चाहिए। पुरोहित बोलते है 'समय वर्ते सावधान' वह तो पुरोहित समझे, शादी करनेवाला क्या समझे? सावधान का अर्थ क्या है? तब कहे, 'बीवी उग्र हो गई हो, वहाँ तू ठंडा हो जाना, सावधान हो जाना।' अब दोनों जने झगड़ें तब पड़ोसी देखने आएँगे या नहीं आएँगे? फिर तमाशा होगा या नहीं होगा? और फिर वापस इकट्ठे नहीं होना हो तो लड़ो। अरे, बँटवारा ही