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आप्तवाणी-३
आबरू नोट करनेवाले हैं, वे समझेंगे कि कभी इनकी आबरू नहीं गई तो आज गई। आबरू तो किसी की होती होगी? यह तो ढंक-ढंककर आबरू रखते हैं बेचारे!
__...यह तो कैसा मोह? आबरू तो उसे कहते हैं कि नंगा फिरे तब भी सुंदर ही दिखे! यह तो कपड़े पहनते हैं, तब भी सुंदर नहीं दिखते। जेकेट, कोट, नेकटाई पहने, फिर भी बैल जैसा लगता है! न जाने क्या मान बैठे हैं अपने आपको! किसी दूसरे से पूछता भी नहीं है। पत्नी से भी नहीं पूछता कि यह नेकटाई पहनने के बाद मैं कैसा लगता हूँ ! आईने में देखकर खुद ही खुद का न्याय करता है कि बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा है। ऐसे-ऐसे करके बाल सँवारता जाता है। और स्त्रियाँ भी बिंदी लगाकर आईने में खुद के खुद ही नखरे करती हैं। यह क्या तरीक़ा है? कैसी लाइफ? भगवान जैसा भगवान होकर यह क्या धाँधली मचाई है? खुद भगवान स्वरूप है।
कान में लौंग डालते हैं, वे खद को दिखते हैं क्या? ये तो लोग हीरा देखें, इसलिए पहनते हैं। ऐसी जंजाल में फँसे हैं, तब भी हीरा दिखाने फिरते हैं! अरे, जंजाल में फंसे हुए मनुष्य को शौक होता होगा? झटपट हल लाओ न! पति कहे तो पति को अच्छा दिखाने के लिए पहनो। सेठ दो हज़ार के हीरे के लौंग लाए हों और पैंतीस हज़ार का बिल लाए तो सेठानी खुश हो जाती है। लौंग खुद को तो दिखते नहीं। सेठानी से मैंने पूछा कि रात को सो जाते हो तब कान के लौंग नींद में भी दिखते हैं या नहीं? यह तो माना हुआ सुख है, रोंग मान्यताएँ हैं, इसलिए अंतर शांति नहीं रहती। भारतीय नारी किसे कहते हैं? घर में दो हज़ार की साड़ी आकर पड़ी हुई हो, तो पहनती है। यह तो पति-पत्नी बाज़ार में घूमने गए हों
और दुकान में हज़ार की साड़ी रखी हुई हो तो साड़ी स्त्री को खींचती है और घर आए, तब भी मुँह चढ़ा हुआ होता है और कलह करती है। उसे भारतीय नारी कैसे कहा जाए?
...ऐसा करके भी क्लेश टाला हिन्दू तो मूल से ही क्लेशी स्वभाव के हैं। इसलिए कहते हैं न कि