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________________ आप्तवाणी-३ १९९ रहे तो फिर और कहाँ रखोगे? एकता यानी क्या कि कभी भी मतभेद न पड़े। इस एक व्यक्ति के साथ निश्चित करना है कि आपमें और मुझमें मतभेद नहीं पड़े। इतनी एकता करनी चाहिए। ऐसी एकता की है आपने? प्रश्नकर्ता : ऐसा कभी सोचा ही नहीं। यह पहली बार सोच रहा hob दादाश्री : हाँ, वह सोचना तो पड़ेगा न? भगवान कितना सोचसोचकर मोक्ष में गए! मतभेद पसंद है? प्रश्नकर्ता : ना। दादाश्री : जब मतभेद हों तब झगड़े होते हैं, चिंता होती है। इस मतभेद में ऐसा होता है तो मनभेद में क्या होगा? मनभेद हो तब डायवोर्स लेते हैं और तनभेद हो, तब अर्थी निकलती है। झगड़ा करो, लेकिन बगीचे में क्लेश आपको करना हो तो बाहर जाकर कर आना चाहिए। घर में यदि झगड़ा करना हो, तब उस दिन बगीचे में जाकर खूब लड़कर घर आना चाहिए। परंतु घर में 'अपने रूम में नहीं लड़ना है', ऐसा नियम बनाना। किसी दिन आपको लड़ने का शौक हो जाए तो बीवी से आप कहना कि चलो, आज बगीचे में खूब नाश्ता-पानी करके, वहाँ पर खूब झगड़ा करें। लोग रोकने आएँ वैसे झगड़ा करना चाहिए। लेकिन घर में झगड़ा नहीं होना चाहिए। जहाँ क्लेश होता है वहाँ भगवान नहीं रहते। भगवान चले जाते हैं। भगवान ने क्या कहा है? भक्त के वहाँ क्लेश नहीं होना चाहिए। परोक्ष भक्ति करनेवाले को भक्त कहा है और प्रत्यक्ष भक्ति करनेवाले को भगवान ने 'ज्ञानी' कहा है, वहाँ तो क्लेश हो ही कहाँ से? लेकिन समाधि होती है! इसलिए किसी दिन लड़ने की भावना हो, तब आप पतिराज से कहना कि 'चलो हम बगीचे में जाएँ।' बच्चों को किसीको सौंप देना। फिर पतिराज को पहले से ही कह देना कि मैं आपको पब्लिक में दो धौल मारूँ तो आप हँसना। लोग भले ही हमारी हँसी-मज़ाक देखें।' लोग तो
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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