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सिद्धगति में भी साथ में रहनेवाला गुण है ! आत्मा जानने के बाद आत्मा का शुद्ध आनंद उत्पन्न होता है, जो क्रमशः बढ़ते-बढ़ते अंत में संपूर्णता तक पहुँचता है।
जीवमात्र में आत्मा की अनंत शक्तियाँ है, परन्तु वे आवृत हैं। अहंकार और ममता चले जाएँ, तब वे शक्तियाँ प्रकट होती है! 'भगवान' से तो ज्ञानशक्ति और स्थिरताशक्ति ही माँगने जैसी है, पुद्गल शक्ति माँगने योग्य नहीं है ! आत्मशक्ति अर्थात् आत्मवीर्य। अहंकार से आत्मवीर्य आवरित हो जाता है। जब आत्मवीर्य कम होता हुआ लगे तब 'मैं अनंत शक्तिवाला हूँ', ऊँची आवाज़ में २५-५० बार बोलने से आत्मवीर्य प्रकट हो जाता है ! 'मोक्ष में जाने तक ही, उस रास्ते में आनेवाले विघ्नों के समक्ष खुद अनंत शक्तिवाला है।' ऐसा बोलने की ज़रूरत है, मोक्ष में जाने के बाद इसकी ज़रूरत नहीं है। ज्ञातादृष्टा रहने से तमाम विघ्न नष्ट हो जाते हैं और आत्मा की शक्तियाँ प्रकट होती है। विनाशी वस्तु की मूर्छा से आत्मा की चैतन्यशक्ति आवृत होती है।
छहों तत्व शुद्ध स्वरूप में अगुरु-लघु स्वभाव के हैं। आत्मा टंकोत्कीर्ण है, ऐसा उसके अगुरु-लघु स्वभाव के कारण है।
क्रोध-मान-माया-लोभ, वे न तो आत्मा के गुण हैं, न ही जड़ के गुण हैं। वे अन्वय गुण नहीं हैं, लेकिन आत्मा की हाज़िरी से उत्पन्न होनेवाले पुद्गल के गुण-व्यतिरेक गुण हैं। जिस प्रकार सूर्य की उपस्थिति से पत्थर में गरमी का गुण उत्पन्न हो जाता है, वैसे।
आत्मा अरूपी है। अरूपी के साथ रूपी चिपक गया, वही आश्चर्य है न! भ्रांति से लिपटा हुआ लगता है। हकीकत में वैसा है नहीं।
टंकोत्कीर्ण अर्थात् आत्मा और पुद्गल का मिक्स्चर जैसा बन गया है। कम्पाउन्ड नहीं! दो तत्व साथ में हैं फिर भी एक-दूसरे में एकाकार कभी भी नहीं होते, वह आत्मा के टंकोत्कीर्ण स्वभाव के कारण है! मिक्स्चर के रूप में होता है, कम्पाउन्ड के रूप नहीं। तेल और पानी को
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