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________________ आप्तवाणी - ३ कुछ असर हो गया, तब आप समझना कि सामनेवाले के मन का असर आप पर पड़ा, तब आपको खिसक जाना चाहिए। वे सब टकराव हैं । इसे जैसे-जैसे समझते जाओगे, वैसे-वैसे टकराव को टालते जाओगे, टकराव टालने से मोक्ष होता है । यह जगत् टकराव ही है, स्पंदन स्वरूप है । १८६ एक व्यक्ति को सन् इक्यावन में यह एक शब्द दिया था । 'टकराव टाल' कहा था और ऐसे उसको समझाया था । मैं शास्त्र पढ़ रहा था, तब उसने मुझे आकर कहा कि दादा, मुझे कुछ दीजिए। वह मेरे यहाँ नौकरी करता था, तब मैंने उससे कहा, 'तुझे क्या दें? तू सारी दुनिया के साथ लड़कर आता है, मारपीट करके आता है ।' रेल्वे में भी लड़ाई-झगड़ा करता है, यों तो पैसों का पानी करता है और रेल्वे में जो नियमानुसार भरना है, वह भी नहीं भरता और ऊपर से झगड़ा करता है, यह सब मैं जानता था। इसलिए मैंने उसे कहा कि तू टकराव टाल । दूसरा कुछ तुझे सीखने की ज़रूरत नहीं है। वह आज तक अभी भी पालन कर रहा है। अभी आप उसके साथ टकराव करने के नये-नये तरीके ढूँढ निकालो, तरह-तरह की गालियाँ दो, फिर भी वह ऐसे खिसक जाएगा। | इसलिए टकराव टालो, टकराव से यह जगत् उत्पन्न हुआ है। उसे भगवान ने ‘बैर से उत्पन्न हुआ है', ऐसा कहा है । हरएक मनुष्य, अरे जीव मात्र बैर रखता है। ज़्यादा कुछ हुआ कि बैर रखे बगैर रहता नहीं है । वह फिर साँप हो, बिच्छू हो, बैल हो या भैंसा हो, कोई भी हो, परंतु बैर रखता है। क्योंकि सबमें आत्मा है। आत्मशक्ति सभी में एक-सी है। क्योंकि यह पुद्गल की कमज़ोरी के कारण सहन करना पड़ता है । परंतु सहन करने के साथ ही वह बैर रखे बगैर रहता नहीं है और अगले जन्म में वह उनका बैर वसूलता है वापस ! सहन? नहीं, सोल्युशन लाओ प्रश्नकर्ता : दादा, आपने जो 'टकराव टालना' कहा है, मतलब सहन करना ऐसा अर्थ होता है न? दादाश्री : टकराव टालने का मतलब सहन करना नहीं है । सहन करोगे तो कितना करोगे? सहना करना और स्प्रिंग दबाना, वह दोनों एक
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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