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________________ आप्तवाणी-३ १८५ इस जगत् के लोग हिसाब चुकाने के बाद अर्थी में जाते हैं। इस जन्म के तो चुका ही देता है, किसी भी तरह से, और फिर नये बाँधता है वे अलग। अब हम नये बाँधते नहीं है और पुराने इस भव में चुकता हो ही जानेवाले हैं। सारा हिसाब चुकता हो गया इसलिए भाई चले अर्थी लेकर! जहाँ किसी भी खाते में बाकी रहा हो, वहाँ थोड़े दिन अधिक रहना पड़ेगा। इस भव का इस देह के आधार पर सब चुकता हो ही जाता है। फिर यहाँ जितनी गाँठे डाली हों, वे साथ में ले जाता है और फिर वापस नया हिसाब शुरू होता है। ...इसलिए टकराव टालो इसलिए जहाँ हो वहाँ से टकराव को टालो। यह टकराव करके इस लोक का तो बिगाड़ते हैं परंतु परलोक भी बिगाड़ते हैं ! जो इस लोक का बिगाड़ता है, वह परलोक का बिगाड़े बिना रहता ही नहीं! जिसका यह लोक सुधरे, उसका परलोक सुधरता है। इस भव में आपको किसी भी प्रकार की अड़चन नहीं आई तो समझना कि परभव में भी अड़चन है ही नहीं और अगर यहाँ अड़चन खड़ी की तो वे सब वहीं पर आनेवाली हैं। प्रश्नकर्ता : टकराव में टकराव करें तो क्या होता है? दादाश्री : सिर फूट जाता है! एक व्यक्ति मुझे संसार पार करने का रास्ता पूछ रहा था। उसे मैंने कहा कि टकराव टालना। मुझे पूछा कि 'टकराव टालना मतलब क्या?' तब मैंने कहा कि 'आप सीधे चल रहे हों और बीच में खंभा आए तो घूमकर जाना चाहिए या खंभे के साथ टकराना चाहिए?' तब उसने कहा, 'ना! टकराएँगे तो सिर फूट जाएगा।' यह पत्थर ऐसे बीच में पड़ा हुआ हो तो क्या करना चाहिए? घूमकर जाना चाहिए। यह भैंस का भाई रास्ते में बीच में आए तो क्या करोगे? भैंस के भाई को पहचानते हो न आप? वह आ रहा हो तो घूमकर जाना पड़ेगा, नहीं तो सिर मारकर तोड़ डालेगा। वैसे ही यदि मनुष्य आ रहे हों तो भी घूमकर जाना पड़ता है। वैसा ही टकराव का है। कोई मनुष्य डाँटने आए, शब्द बमगोले जैसे आ रहे हों तब आप समझ जाना कि 'टकराव टालना है।' आपके मन पर असर बिल्कुल नहीं हो, फिर भी अचानक
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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