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________________ आप्तवाणी-३ १८१ बाप उन पर चिल्ला रहा होता है! यह तो रामभरोसे फादर बन जाते हैं। इसमें बच्चों का क्या दोष? ये बच्चे हमारे पास सारी भूलें कबूल करते हैं, चोरी की हो, तब भी कबूल कर लेते हैं। आलोचना तो गज़ब का पुरुष हो वहीं पर होती है। हिन्दुस्तान का किसी अद्भुत स्टेज में बदलाव हो जाएगा। संस्कार प्राप्त करवाए, ऐसा चारित्र चाहिए प्रश्नकर्ता : दादा, घरसंसार पूरा शांतिमय रहे और अंतरात्मा का जतन हो ऐसा कर दीजिए। दादाश्री : घरसंसार शांतिमय रहे उतना ही नहीं, मगर बच्चे भी हमारा देखकर अधिक संस्कारी बनेंगे, ऐसा है। यह तो सब माँ-बाप का पागलपन देखकर बच्चे भी पागल हो गए हैं, क्योंकि माँ-बाप के आचार-विचार योग्य नहीं है। पति-पत्नी भी जब बच्चे बैठे हों तभी छेड़खानी करते हैं, तब फिर बच्चे बिगड़ेंगे नहीं तो और क्या होगा? बच्चों में कैसे संस्कार पड़ते हैं? मर्यादा तो रखनी चाहिए न? इन अंगारों का कैसा ऑ लगता है? छोटा बच्चा अंगारो का ऑ रखता है न? माँ-बाप के मन फ्रेक्चर हो गए हैं, मन विहवल हो गए हैं। कैसी भी वाणी बोलते हैं। सामनेवाले को दु:खदायी हो जाए वैसी वाणी बोलते हैं, इसीलिए बच्चे बिगड़ जाते हैं। आप ऐसा बोलते हैं कि पति को दुःख होता है और पति ऐसा बोलता है कि आपको दुःख होता है। यह तो सारी पज़ल खड़ी हो गई है। हिन्दुस्तान में ऐसा नहीं होता। परंतु यह कलियुग का निमित्त है, ऐसा ही है। उसमें भी यह एक गज़ब का विज्ञान निकला है, तो जिसे मिलेगा उसका काम निकल जाएगा। ... इसलिए सद्भावना की ओर मोड़ो प्रश्नकर्ता : बच्चे टेढ़े चलें, तो क्या करना चाहिए? दादाश्री : बच्चे टेढ़े रास्ते जाएँ, तब भी आपको उसे देखते रहना है और जानते रहना है। और मन में भाव तय करना है और प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि इस पर कृपा करो।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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