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________________ १८० आप्तवाणी-३ यह रास्ता चुना था। इसलिए इतने छोटे बच्चे के साथ भी मित्रता है और पचासी साल के बूढ़े के साथ भी मित्रता! बच्चों के साथ मित्रता का सेवन करना चाहिए। बच्चे प्रेम ढूँढते हैं, लेकिन प्रेम उन्हें मिलता नहीं। इसलिए फिर उनकी मुश्किलें वे ही जानें, कह भी नहीं सकते और सह भी नहीं सकते। आज के युवाओं के लिए रास्ता, हमारे पास है। इस जहाज का मस्तूल किस तरफ लेना, वह हमें अंदर से ही रास्ता मिलता है। मेरे पास ऐसा प्रेम उत्पन्न हुआ है कि जो बढ़ता नहीं और घटता भी नहीं। बढ़ताघटता है वह आसक्ति कहलाती है। जो बढे-घटे नहीं वह परमात्म प्रेम है। इसीलिए कोई भी मनुष्य वश में हो जाता है। मुझे किसीको वश में नहीं करना है, फिर भी प्रेम से हरकोई वश में रहता है, हम तो निमित्त खरा धर्मोदय ही अब प्रश्नकर्ता : इस नयी प्रजा में से धर्म का लोप किसलिए होता जा रहा है? दादाश्री : धर्म का लोप तो हो ही गया है, लोप होना बाकी ही नहीं रहा। अब तो धर्म का उदय हो रहा है। जब लोप हो जाता है, तब उदय की शुरूआत होती है। जैसे इस सागर में भाटा पूरा हो, तब आधे घंटे में ज्वार की शुरूआत होती है। उसी तरह यह जगत् चलता रहता है। ज्वार-भाटा नियम के अनुसार । धर्म के बिना तो मनुष्य जी ही नहीं सकता। धर्म के अलावा दूसरा आधार ही क्या है मनुष्य को? ये बच्चे तो दर्पण हैं। बच्चों के ऊपर से पता चलता है कि हममें कितनी भूल है। बाप रातभर सोए नहीं और बेटा आराम से सोता है, उसमें बाप की भूल है। मैंने बाप से कहा कि, 'इसमें तेरी ही भूल है। तूने ही पिछले जन्म में बेटे को सिर पर चढ़ाया था, बहकाया था, और वह भी तेरी किसी लालच की खातिर।' यह तो समझने जैसा है। यह अन्सर्टिफाइड फादर और अन्सर्टिफाइड मदर की कोख से बच्चे जन्मे हैं, उसमें वे क्या करें? बीस-पच्चीस वर्ष के होते हैं, तब बाप बन जाते हैं। अभी तक उनका ही
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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